विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। बात लगभग साढ़े चार दशक पुरानीं है। मैं पुराने बस स्टैंड पर आगरा जाने हेतु बस देख रहा था, तभी मेरी नजर एक अधेड़ उम्र के देहाती टाइप के एक व्यक्ति पर पड़ी, जो गांव के धुर्रो जैसे अंदाज में कंधे पर झोला डाले हुए बस स्टैंड के अंदर बड़ी बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था। उस गंवार जैसे दिखने वाले व्यक्ति को मैंने पहचान लिया, वे थे छाता के तत्कालीन डिप्टी कलक्टर के.सी. गर्ग।
मैंने उनसे पूंछा कि गर्ग साहब क्या बात है आप इस स्थिति में क्यों है? उन्होंने कहा कि छाता जाने के लिए बस का इंतजार कर रहा हूं। तब मैंने पूंछा कि आपकी जीप कहां है? इस पर उन्होंने कहा कि कलक्टर साहब ने उसे वापस ले लिया है अतः मैं रोजाना बस से ही जाता हूं और वापस भी बस से ही आता हूं। मैंने पूंछा कि आपकी जीप को कलक्टर साहब ने आखिर क्यों छीन लिया? इस पर उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया कि वे मुझसे नाराज हैं। मैंने उनसे पुनः पूंछा कि आखिर क्यों नाराज हैं? आप तो बड़े अच्छे और ईमानदार अफसर हैं इस पर उन्होंने कहा कि मैं क्या बताऊं ये तो वे ही जानें।
हालांकि मैं भली-भांति जानता था कि उस समय के जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल उन जैसे सीधे साधे और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी से क्यों नाराज थे, फिर भी मैंने उनके मुंह से कहलवाने के लिए पूंछ लिया था। दरअसल बात यह थी कि एक बार कोसी में जन समस्याओं को लेकर बहुत बड़ा जन आन्दोलन हुआ था, जिसकी अगुवाई देव तुल्य वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री कांति चंद्र अग्रवाल के बड़े पुत्र शिशिर कुमार कर रहे थे। उस आन्दोलन ने ऐसा विकट रूप धारण कर लिया कि अफसरों के होश उड़ गए और गुस्से में आकर तत्कालीन जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल ने शिशिर कुमार को गिरफ्तार करा दिया इस पर आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया।
आंदोलन के उग्र होते ही सतीश अग्रवाल ने छाता के तत्कालीन एसडीएम के.सी. गर्ग से कहा कि यदि ये नहीं मानते हैं तो गोली चलवा दो। इस पर के.सी. गर्ग ने कहा कि सर गोली चलवाने से तो बात और बिगड़ जाएगी किंतु जिलाधिकारी नहीं माने फिर भी केसी गर्ग ने उनके आदेश को नहीं माना। इस पर जिलाधिकारी स्वयं मौके पर गए तथा पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। उनके द्वारा पुलिस को गोली चलाने का आदेश मिलते ही पुलिस वालों ने जैसे ही पोजीशन लेनी शुरू की तुरंत के.सी. गर्ग उनके सामने खड़े हो गए और बोले कि यदि निर्दोषों को गोली मारनी है तो सबसे पहले मुझे गोली मार दो।
बात बहुत बढ़ गई और अंत में जिलाधिकारी को मजबूरन अपना आदेश वापस लेना पड़ा। तभी से जिलाधिकारी के.सी. गर्ग से एकदम खफा हो गए तथा न सिर्फ उनकी जीप छीन ली बल्कि कदम कदम पर उन्हें प्रताड़ित व अपमानित करते रहते। इस बात का तो मैं स्वयं भी गवाह हूं, मेरे सामने भी ऐसे एकाध वाकये हुए थे। इसके अलावा जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल तथा एसडीएम के.सी. गर्ग के स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर था। कहते हैं कि आपस में पटरी तभी बैठती है जब दोनों पक्ष एक जैसे विचारों के हों। यदि तो व्यक्ति समान स्वभाव के आपस में मिल जाते हैं तो उनकी बड़ी जल्दी दोस्ती हो जाती है और जब दो परस्पर विरोधी स्वभाव वाले लोग आपस में मिलते हैं तो उनकी एक रसता कभी नहीं हो सकती।
के.सी. गर्ग सचमुच के गृहस्थी संत थे। रिटायर होने के बाद मैं एकाध बार उनके चौक बाजार स्थित घी के कटरा में उनके पैतृक मकान में जाकर मिला था। कुछ दिन बाद मैंने गोवर्धन में ब्रह्मलीन महान संत गया प्रसाद जी के यहां भी संत जीवन व्यतीत करते हुए उन्हें देखा था। बताते हैं कि आगे चलकर वे ऐसे विरक्त संत हो गए कि पूरा जीवन उन्होंने ईश्वर के ध्यान में लीन रहकर जप तप करते बिताया। वे एसडीएम रहते हुए हमेशा जनता के दुख दर्द को दूर करने में लगे रहते। उनका पहनाव उढ़ाव, रहन सहन व खानपान वगैरा सब कुछ सात्विक था। अवकाश ग्रहण के पश्चात तो वे पूर्णत: संतत्व जीवन व्यतीत करते थे तब दिन में केवल एक बार स्वयं अपने हाथों से बनाकर थोड़ी सी खिचड़ी खाते।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब के.सी. गर्ग रिटायर हो गए उसके बाद जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल व पुलिस अधीक्षक हाकिम सिंह के मध्य बड़े जोर की लड़ाई छिड़ गई और एक दूसरे के ऊपर भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के आरोप-प्रत्यारोप लगने लगे और तो और शासन को भी दोनों ओर से एक दूसरे की शिकायतें भेजी जाने लगीं। लड़ाई इतनी जबरदस्त थी कि प्रशासन और पुलिस के लोग तक आपस में भिड़ने लगे यानी कि तू तू मैं मैं पर उतर आये। प्रदेश शासन भी इन दोनों की लड़ाई से क्षुब्ध हो उठा और दोनों की उच्चस्तरीय जांच कराई गई। प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल को बुरी तरह पटकनी लगी तथा उनका यहां से ट्रांसफर, जो शायद सचिवालय लखनऊ के लिए कर दिया गया और जीत का सेहरा एस.पी. हाकिम सिंह के माथे बंधा और वे इस घटनाक्रम के काफी दिनों बाद तक जमे रहे।
मेरा मानना है कि जिलाधिकारी सतीश अग्रवाल को यह दंड शायद संत के.सी. अग्रवाल के साथ किए गए दुर्व्यवहार की वजह से ही मिला होगा। आज भले ही के.सी. गर्ग मौजूद नहीं है किंतु उनका अनुकरणींय व्यक्तित्व मौजूद है। ऐसे लोग मरकर भी अमर रहते हैं मैं उनको नमन करता हूं।