Sunday, May 19, 2024
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बड़े भये तौ का भये जैसे पेड़ खजूर

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। रहीम दास जी का यह दोहा मुझे बेहद पसंद है। इस दोहे में उन लोगों की सटीक व्याख्या की गई है जो बड़े तो बहुत ज्यादा होते हैं किंतु मानसिक कद उनका बेहद नांटा होता है। ये लोग जन्म भले ही मनुष्य योनि में लेते हैं किंतु होते खजूर के पेड़ जैसे। इनका धन खजूर की तरह होता है और छाया तो ऐसी होती है जिसका अता पता भी नहीं रहता। ये लोग तो सिर्फ अपने तक ही सीमित रहते हैं।
     ऐसे लोग जो भले ही कितने भी धनवान हो और कितने भी प्रभावशाली किंतु सब बेकार। चौरासी लाख योनियों के बाद मिली मनुष्य योनि इसलिए नहीं मिली है कि अपना ही अपना सोचो और पूरी जिंदगी अपना ही अपना मंत्र जपते जपते एक दिन मिट्टी में मिल जाओ। मैं, मेरा घर परिवार बस इसके आगे कुछ नहीं। हमारे पिताजी अक्सर कहते थे कि सभी वेद, पुराण आदि धर्म शास्त्रों का निचोड़ है परमार्थ।
     मेरी नजर में तो ये लोग बज्र मूर्ख हैं जिन्हें यह भी नहीं पता कि अपना का अर्थ क्या होता है। सही मायने में अपना लाभ तो विरानों यानीं गैरों की मदद में निहित होता है। यदि हमारी सोच यानीं हमारा मूल स्वभाव परोपकार का होगा तो सचमुच में हम अपना लाभ कर पाएंगे वर्ना पूरा जीवन अकारत हुआ यानीं दो कौड़ी का। धन, संपत्ति, जमीन, जायदाद, प्रभाव, रंग रुतवा तथा शान शौकत आदि सब निरर्थक।
     इस प्रकार की टुच्ची सोच रखने वालों की गति क्या होती है? यह बताने की जरूरत नहीं यह तो सर्वविदित है। इनका लोक तो क्या परलोक भी बिगड़ जाता है न मालूम कौन सी गंदी योनि में जन्म मिलेगा। इसके अलावा अंत समय में बड़ा पछतावा रहता है कि हमने अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं किया। यही नहीं जिन घर वालों के लिए जोड़ जोड़ कर रखे जा रहे हैं तथा तरह-तरह के पाप पुण्य करके धन संपत्ति का संचय कर रहे हैं, वे भी आगे चलकर मुंह मोड़ लेते हैं। मैंने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं। शेष में ये लोग बिलबिलाते और छटपटाते ही रह जाते हैं तथा कहते हैं कि हमने इनके लिए क्या-क्या नहीं किया और आज उसका क्या प्रतिफल मिल रहा है।
     अब मैं एक कहानी सुनाता हूं, जो पिताजी ने मुझे उन दिनों सुनाई थी जब मैं किशोरावस्था पार कर युवावस्था में प्रवेश कर रहा था तथा पिताजी के कारोबार में उनका हाथ बंटाता था। उस समय मुझे भी अधिक धन कमाने की हाय लगी रहती थी तथा भला बुरा सोचे बगैर बस एक ही धुन सवार रहती थी कि कैसे भी हो ज्यादा से ज्यादा आमदनीं होनी चाहिए। कहानी यह है कि एक व्यक्ति अधिक धन दौलत कमाने की लालसा में भला बुरा कुछ भी नहीं सोचता था चाहे उसे कितना भी पाप पुण्य क्यों न करना पड़े यहां तक कि लूटपाट और हत्या तक कर डालता था।
     एक बार ऐसा हुआ कि किसी पहुंचे हुए व्यक्ति से उसका वास्ता पड़ गया। पहुंचे हुए व्यक्ति ने उस व्यक्ति से पूंछा कि तुम यह सब जो कर रहे हो वह किसके लिए कर रहे हो? उसने कहा कि अपने परिवार के भरण पोषण के लिए। तब पहुंचे हुए व्यक्ति ने उस लालची व्यक्ति से कहा कि जिनके लिए तुम यह सब पाप पुण्य कर रहे हो वे तुम्हारे किसी मतलब के नहीं क्यों इस पाप की गठरी को अपने सिर पर रख रहे हो? वे तो खाने पीने और मौज मस्ती तक के साथी हैं जब तुम्हारे बुरे दिन आएंगे तब ये सब साथ छोड़ देंगे और पूरा पाप तुम्हें ही भोगना पड़ेगा।
     उस व्यक्ति ने पहुंचे हुए व्यक्ति की बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अरे ये तो मेरे लिए जान की बाज़ी तक लगा देंगे तुम्हें कुछ नहीं मालूम। इस पर दोनों में बहस छिड़ गई। तब लालची व्यक्ति इस बात पर तुला रहा कि मेरे घरवाले मेरे लिए मर मिटने को तैयार रहेंगे तो फिर पहुंचे हुए व्यक्ति ने कहा कि ठीक है मैं अभी सिद्ध किए देता हूं कि तेरे घर वाले तेरे लिए मरना मिटना तो दूर एकदम मुंह फेर लेंगे। लालची व्यक्ति बोला कि यदि तुमने यह सिद्ध कर दिया तो फिर मैं आज से ही इनके लिए पाप पुण्य करना छोड़ दूंगा।
     इसके बाद पहुंचे हुए व्यक्ति ने लालची से उसके घर का पता ठिकाना पूंछा तथा वहां खबर भिजवादी कि तुम्हारे आदमी की दशा बिगड़ गई है। हालत बहुत खराब है तुरंत चल कर उसे देखो। साथ ही लालची को पट्टी पढ़ा दी कि तुम लेट जाओ और आंखें बंद करके जोर जोर से सांस लेना तथा ऐसा नाटक करना जैसे सचमुच में तुम मरणासन्न स्थिति में हो लालची ने ऐसा ही किया। जैसे ही घर वाले भागे भागे आये, उन्हें दूर से आते हुए देखकर वह लेटकर नाटक करने लगा।
     पहुंचे हुए व्यक्ति ने उनसे कहा कि इसका अंत समय आ गया है और यह बचेगा नहीं। इतना सुनते ही वे लोग बुरी तरह घबरा कर रोने धोने लगे। साथ ही पहुंचे हुए व्यक्ति से कहने लगे कि महाराज कोई ऐसा उपाय करो जिससे इनके प्राण बच जांय। इस पर वे बोले कि एक उपाय हो सकता है। उनके मुंह से यह बात निकलते ही वे सभी एक स्वर में बोले कि जल्दी बताओ कि क्या उपाय हैं? हम जरूर करेंगे। इस पर उस पहुंचे हुए व्यक्ति ने कहा कि यदि इसकी जिंदगी बचाने के बदले में आप लोगों में से कोई अपनी जिंदगी देने को तैयार हो तो यह कार्य संभव है।
     इतना सुनते ही सब की बोलती बंद हो गई यानी कि किसी ने भी अपनी जिंदगी देने की हां नहीं भरी। बेटे, बहू सब कहने लगे कि अभी हमने देखा ही क्या है इस दुनियां में यानी किसी ने कुछ किसी ने कुछ बहाना बना दिया। इसके बाद पहुंचे हुए व्यक्ति ने उसकी पत्नी की ओर मुखातिब होकर कहा कि तुम ही पति परमेश्वर के लिए अपनीं जान दे दो। इस पर वह बोली कि मुझे तो इनकी छोड़ी हुई गृहस्थी चलानी है मैं कैसे अपनी जान दे दूं? उसकी बात पर पहुंचे हुए व्यक्ति ने कहा कि गृहस्थी तो सब अपने आप चलती रहेगी बेटे बहू समझदार हैं। सब संभाल लेंगे क्यों चिंता करती हो? इस पर वह बोली कि मेरा मन तो यह है कि इनके सारे क्रिया कर्म करने के बाद फिर मैं कोई अन्य जीवनसाथी की तलाश लूंगी और बाकी की जिंदगी ऐशौ आराम व ठाट वाट से बिताऊंगी विधवा जिंदगी थोड़े ही जीऊंगी।
     मतलब सभी ने आंखें बदल ली तथा कोई अपनी जान देने के दाव में नहीं आया। यह सब बातें वह व्यक्ति जो उनके लिए दिन रात पाप पुण्य करने में लगा रहता था, बड़े ध्यान से सुन रहा था। कुछ देर में पहुंचे हुए व्यक्ति का इशारा पाते ही वह लालची उठ बैठा और क्रोध से पागल होकर उन सभी को खूब खरी-खोटी सुनाई और उसकी आंखें खुल गईं। उसके बाद उसने उन सभी घरवालों से नाता तोड़ लिया तथा सभी बुरे कर्मों से तौबा कर ली। फिर तो उसे वैराग्य प्राप्त हो गया और उसी पहुंचे हुए व्यक्ति का शिष्य बन परोपकार के कार्यों में अपना शेष जीवन बिताने लगा।
     सौ की सीधी बात यह है कि हम लोग बजाय खजूर के पेड़ के ऐसे फलदार वृक्ष बनें जिनसे औरों को फल व छाया मिले। इसी में हमारा जीवन सार्थक है। अत्यधिक धन लिप्सा इंसान को ऐसा अंधा बना देती है जिसे यह भी दिखाई नहीं देता कि किस बात में हमारी भलाई है और किसमें बुराई। धन की कामना केवल इतनी रहनी चाहिए कि “ठाकुर इतना दीजिए जिसमें कुटुम्म समाय, मैं भी भूखा ना रहूं साधु भी भूखा न जाय।

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