Saturday, May 4, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेपुत्र का श्राप क्षण भर में हो गया सच

पुत्र का श्राप क्षण भर में हो गया सच

विजय गुप्ता की कलम से

 मथुरा। घटना लगभग पच्चीस वर्ष पुरानीं है। गर्मियों के दिन थे मैं और मेरा दिवंगत पुत्र विवेक दोपहर के समय पलंग पर लेटे हुए थे। विवेक ने मुझसे कहा कि बाबूजी अब तो तुम्हारे पास दो जनरेटर हो गए हैं उनमें से एक जनरेटर पप्पी बुआ के घर भेज दो, वहां पर जब बिजली चली जाती है तब चन्दन गर्मी में परेशान होता है।
 असल में हमारे यहां पर एक दो दिन पहले ही दूसरा जनरेटर आया था और हमारी छोटी बहन का दिवंगत पुत्र चन्दन उस समय बहुत छोटा था जब बिजली चली जाती थी तब कूलर के बंद होने पर परेशान हो जाता था। मैंने बच्चे की बात को सुना अनसुना कर दिया किंतु वह फिर वही बात दोहराने लगा कि एक जनरेटर को पप्पी बुआ के यहां क्यों नहीं भेज देते? इस पर मैंने हां हूं करके उसकी बात को टालना चाहा तो वह नहीं माना तथा जिद करने लगा कि जनरेटर को अभी भिजवाओ। इस पर मैंने उसे थोड़ा सा डांटा कि तू फालतू की जिद इस समय मत कर मुझे नींद आ रही है और कूलर की ठंडी हवा में सोने दे।
 इस पर भी विवेक नहीं माना और बोला कि जब कूलर ही फुंक जाएगा तो फिर उसकी ठंडी हवा कैसे खा लोगे? इस पर मुझे और भी झुंझलाहट हो गई तथा मैंने कहा कि तू विश्वामित्र है परशुराम है या दुर्वासा ऋषि? जो तेरे श्राप देते ही कूलर फुंक जाएगा। अब बहुत हो चुकी तेरी जिद चुपचाप तू भी सो जा और मुझे भी सोने दे। इसके बाद मैं जैसे ही लेटा कि कमरे में बड़े जोर से बिजली के तारों के जलने जैसे बदबू आई। मैंने उठकर देखा तो कूलर में से धुआं उठ रहा था यह देखते ही मैंने तुरंत कूलर को बंद कर दिया तथा दो मिनट बाद पुनः चलाया तो वह चला ही नहीं क्योंकि वास्तव में कूलर की मोटर फुंक चुकी थी और अंदर की वायरिंग भी जल गई थी।
 इस घटना से मैं अंदर तक हिल गया कि पता नहीं इंसान के रूप में यह कौन है? मैं इतना भयभीत हो गया कि नींद हो गई एकदम उड़न छूं और आनन फानन में एक जनरेटर को अपनी छोटी बहन के छत्ता बाजार जोहरी गली स्थित घर पर पहुंच वाया। मुझे यह डर सता रहा था कि अभी तो कूलर पर बीती है और ऐसा न हो कि कहीं और कुछ बात मेरे लिए इसके मुंह से निकल गई तो पता नहीं मेरा क्या हश्र होगा? ऐसा अक्सर हो जाता था कि उसके मुंह से निकली बातें सच हो जाया करती थीं।
 एक और घटना बताना चाहता हूं एक दिन में बाजार से आया और एक नारियल उसे दिखा कर कहा कि देख मैं तेरे लिए गोला लेकर आया हूं। सुबह फोड़कर भगवान का भोग लगाएंगे और तुझे उसका पानीं पिलाएंगे क्योंकि नारियल का पानीं उसे बेहद पसंद था। विवेक बोला कि, अभी पिला दो, तब मैंने कहा कि सुबह पी लेना, इस पर वह बोला कि नहीं मेरी अभी पीने की बहुत जोर की इच्छा है। इसके बाद मैंने कहा कि तू वैसे तो भगवान का इतना बड़ा भक्त बनता है और फिर तुझे इतना भी सब्र नहीं है कि सुबह भगवान का भोग लगाकर पानीं पी ले। इस पर उसने कहा कि क्या भगवान का भोग अब नहीं लग सकता? तब मैंने उसे झिड़क सा दिया कि तू फालतू की जिद मत कर तू बच्चा है बच्चे की तरह ही रह सुबह भगवान का भोग लगाकर पी लेना फिर वह मन मसोसकर रह गया।
 इस बात को शायद एक मिनट ही हुआ होगा कि कमरे में चट की आवाज हुई मैंने चारों ओर देखा पर कुछ दिखाई नहीं दिया तभी मेरा ध्यान देवी देवताओं की तस्वीरों वाले पूजा के स्थान पर रखें नारियल पर गई तो मैं भौचक्का रह गया क्योंकि नारियल स्वत: ही फट गया तथा उसके अंदर की गिरी साफ दिखाई देने लगी किंतु इतना अधिक भी नहीं फटा कि उसका पानीं ही फैल जाय। इसके तुरंत बाद मैंने नारियल के चटके हिस्से को चाकू से चौड़ा कर उसका पानीं निकाला व भगवान का भोग लगाकर उसे पिलाया।
 इस घटना ने भी मुझे हिला कर रख दिया कि यह तो वास्तव में साधारण इंसान नहीं है। मैं सोचने लगा कि यह बच्चा है या बवाल है जो भले ही चल फिर नहीं सकता किंतु इसकी इच्छा शक्ति कुछ से कुछ कराने की सामर्थ्य रखती है। एक घटना जो मेरे सामने की नहीं है किंतु हमारी छोटी बहन बताती है कि एक बार हम सभी लोग ऊपर छत पर बैठे हुए थे तभी विवेक बोला कि देखो अभी कुछ देर में जोर की आंधी आएगी और वर्षा होने लगेगी अतः मुझे नींचे ले चलो। उसकी इस बात पर किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया क्योंकि धूप निकली हुई थी लेकिन देखते ही देखते कुछ ही देर में धूप गायब हो गई तेज हवाओं के साथ आंधी आई और वर्षा भी शुरू हो गई।
 विवेक बचपन से ही चल फिर नहीं सकता था क्योंकि ब्रेन से हाथ पैरों को कंट्रोल करने वाली उसकी नसें कमजोर थीं किंतु उसके चेहरे पर तेज था तथा बुद्धि बहुत तीव्र थी। सौम्य और शांत स्वभाव जैसे उसे अपने बाबा यानीं हमारे पिताजी से मिला था। वह हमारे पिताजी की भांति ही अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक विचार रखता था। घायल जीव जंतुओं, पशु पक्षियों खास तौर से गायों से उसे बड़ा स्नेह था। जब भी उसे पता चलता कि फंला जगह कोई घायल गाय पड़ी है तो वह तुरंत जिद पकड़ लेता कि उसे अपने घर ले आओ और तभी मानता जब तक कि उस गाय को हम अपने घर नहीं ले आते।
 उसकी अध्यात्म के प्रति गहन रुचि थी तमाम धार्मिक पुस्तकें मंगवा कर अपनी मां से सुनता व सभी अवतारों के बारे में जिज्ञासु रहता था। स्नान के बाद अपनी मां से प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का एक अध्याय सुनना उसका नित्य नियम था। लगभग बीस वर्ष पूर्व उसने साढ़े सत्रह वर्ष की उम्र में अपनी देह त्यागी। जिस दिन उसने अपनी देह त्यागी थी उस दिन मकर संक्रांति का पर्व था तथा प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में अचानक सोता का सोता रह गया। उस समय इलाहाबाद में महाकुंभ पर्व चल रहा था तथा जिस समय उसने शरीर छोड़ा वह समय महा कुंभ के शाही स्नान के मुहूर्त का था।
 सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वह प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का श्रवण करता था, क्योंकि उस दिन उसे ठंड लग गई थी और उसकी मां ने उसे नहलाया नहीं था, इसी कारण वह श्रीमद् भागवत कथा नहीं सुन पाया। शनिवार का दिन और शाम का समय था सात बजने वाले थे विवेक के पास ट्रांजिस्टर चल रहा था। मैंने उसकी मां से कहा कि इसकी तबीयत ठीक नहीं है सर्दी लगी हुई है यह क्या किर्र किर्र चला रखा है बंद कर इस ट्रांजिस्टर को। इतना सुनते ही वह एकदम गुस्सा सा होने लगा और इशारों से उसने ट्रांजिस्टर बंद करने को मना कर दिया। उसके मना करते ही मथुरा वृंदावन रेडियो से उद्घघोषक राधा बिहारी गोस्वामी की आवाज सुनाई पड़ी कि अब आप फंला पंडित जी से श्रीमद्भागवत कथा का सस्वर पाठ सुनिए। इसके पश्चात श्रीमद्भागवत कथा का संस्कृत पाठ और फिर उसका हिन्दी अनुवाद हुआ। यानी कि प्रति दिन तो वह अपनी मां से सिर्फ हिंदी में भागवत जी को श्रवण करता था और देह त्यागने से पूर्व संस्कृत पाठ और हिन्दी अनुवाद दोनों ही सुने। मथुरा वृंदावन रेडियो से सप्ताह में एक दिन शनिवार को भागवत कथा प्रसारित होती थी। उसने एक बार हमारे घर में श्रीमद् भागवत सप्ताह भी जिद करके कराई और सातों दिन पूरे समय बैठता था।
 उसने अपने प्राण अर्ध नेत्रों से त्यागे। बताते हैं कि सर्वश्रेष्ठ तो ब्रह्मांड फाड़कर त्यागे जाने वाले होते हैं जो ब्रहम ऋषि देवराहा बाबा ने त्यागे थे और उसके बाद श्रेष्ठता  अर्ध नेत्रों की मानीं जाती है। पूज्य देवराहा बाबा का भी उसे आशीर्वाद था, बाबा कहते थे कि इसे मैं ठीक तो कर दूं लेकिन इसका पूर्व जन्मों का जो प्रारब्ध है वह इसी जन्म में पूरा हो जाय वही इसके हित में है। ज्योतिषियों व कई पहुंचे हुए महात्माओं का कहना था कि यह कोई योग भ्रष्ट दिव्य आत्मा है इसकी तपस्या में विघ्न पड़ने की वजह से यह मनुष्य रूप में यहां आया है।
 अन्त में एक और महत्वपूर्ण बात में विवेक के बारे में बताना चाहता हूं। जब हम सभी लोग उसे जल समाधि देने के लिए यमुना जी ले गए उस समय ध्रुव टीले पर अखंड रामायण पाठ का समापन चल रहा था और जैसे ही उसे जल समाधि दी जाने लगी उसी क्षण पूर्णाहुति प्रारंभ हो गई तथा मंत्रोच्चारण शंख ध्वनि घंटे घड़ियालों आदि की मिश्रित ध्वनि से एक अलौकिक वातावरण की अनुभूति हो रही थी। लाउडस्पीकर की आवाज दूर दूर तक गूंज रही थी। जल समाधि देते ही पूर्णाहुति भी समाप्त हो गई। मैंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया किंतु हमारे बड़े भाई साहब व अन्य लोग यह कहते सुने गए कि ऐसा लग रहा है कि यह सब इसी के निमित्त हो रहा है। तब मुझे भी यह महसूस हुआ कि शायद यह सब इसी के निमित्त था। मैं कभी-कभी अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं कि ऐसी पुण्यात्मा ने हमारे घर में जन्म लिया।
RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments