Saturday, May 4, 2024
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गीता देवी यथा नाम तथा गुंण

मथुरा। गीता जयंती के दिन जन्म लेने और अमावस्या की रात्रि में देह त्यागने का सौभाग्य प्राप्त करने वाली गीता देवी स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजसेवी स्व० लाला नवल किशोर गुप्ता की सबसे बड़ी संतान थीं। जैसा उनका नाम था वैसे ही उनके अंदर गुंण थे वह अपने पिता की भांति छल कपट से दूर शांत और सौम्य स्वभाव की थीं। दया और परोपकार उनके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था मेरा यह सौभाग्य है कि वह मेरी बड़ी बहन थीं। मेरे ऊपर उनका विशेष स्नेह व आशीर्वाद था।
     उनके जीवन की सबसे दुर्लभ बात यह है कि उन्होंने गीता जयंती के शुभ दिन जन्म लिया और अमावस्या की रात्रि में चलते फिरते बोलते चालते अपने पति की मौजूदगी में देह त्यागी। देह त्यागने से पूर्व उन्हें अपने जाने का आभास हो गया था, इसीलिए कुछ घंटे पहले वह हमारे जीजाजी के साथ घर आईं सभी से बड़ी आत्मीयता के साथ भाव विह्वल होकर मिलकर गईं।
     हमारे दिवंगत पुत्र विवेक और पिताजी स्व० लाला नवल किशोर जी की भांति उन्हें भी कभी-कभी कुछ बातों का पूर्वाभास हो जाता था। यही कारण था कि उन्हें अपने देह त्यागने का भी आभास हो गया था। हमारी बड़ी बहन गीता देवी जिन्हें हम सब भाई बहन जीजी कहते थे साक्षात् देवी स्वरूपा थीं। उन्होंने उस पुराने जमाने में लगभग 60-65 वर्ष पूर्व बी.ए तक की पढ़ाई की थी। उनकी शादी बहुत बड़े घराने में हुई थी।
     हमारी जीजी के ददिया ससुर सेठ प्रभु दयाल जी ने स्व. लाला लाजपत राय के साथ मिलकर पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की थी। वे मूलतः मुल्तान के रहने वाले थे जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की शुरुआत मुल्तान में एक कमरे से की और बाद में इसे लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया। पंजाब नेशनल बैंक के  ६ संस्थापक सदस्य थे जिनमें लाला लाजपत राय, सेठ प्रभु दयाल, दयाल सिंह मजीठिया, लाला हर किशन लाल, लाला लाल चंद और लाला ढोलना दास।
     जीजी के ददिया ससुर देश के नामी-गिरामी घराने से थे उनके अपने निजी हवाई जहाज चलते थे उनके एक भाई मुल्तान में सिविल जज थे। मुल्तान में आटा, मैदा, सूजी और बेसन आदि बनाने वाली एक बहुत बड़ी मिल थी। २८ कपास के कारखाने भी थे। उन्हें राय बहादुर का खिताब भी मिला हुआ था। हमारी बहन के ससुर स्व० सेठ मदन लाल गुप्ता महावर वैश्य समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे और पूरे समाज में उनकी तूती बोलती थी। भारत पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वे मुल्तान से आकर कुछ समय अलवर रहे तथा उसके बाद शक्ति नगर दिल्ली में स्थाई रूप से बस गए।
     जीजी के इतने बड़े घराने में शादी होने का भी बड़ा रोचक किस्सा है। हमारे पिताजी स्व० लाला नवल किशोर जी ने देवी स्वरूपा अपनी कन्या के लिए सुयोग्य वर की तलाश में अनेक शहरों की खाक छान डाली लेकिन सबसे श्रेष्ठ वर उन्हें मुल्तान वालों के यहां लगा किंतु सेठ मदन लाल जी हाथ रखने को तैयार नहीं थे वे अपने सबसे बड़े पुत्र हरगोविंद का रिश्ता अपनी टक्कर के किसी ऊंचे घराने में करना चाहते थे किंतु हमारे पिताजी ने हार नहीं मानीं और वे चक्कर पर चक्कर लगाते रहे। यानीं कि उन्होंने मुल्तान वालों के घर सत्रह बार दस्तक दी। इसके पीछे हमारी माता जी श्रीमती रतन देवी का भी विशेष योगदान रहा क्योंकि जब पिताजी हताश होकर दिल्ली से वापस घर आते तो माता जी कुछ दिन बाद फिर भेजती क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि मुल्तान वालों का लड़का सबसे अच्छा है।
     इसी दौरान सेठ मदनलाल जी की बात उत्तर प्रदेश के तत्कालीन कृषि मंत्री राममूर्ति लाल महावर से उनकी पुत्री से रिश्ता करने के लिए चली और वे लड़की को देखने के लिए सपरिवार बरेली गए किंतु लड़की पसंद न होने के कारण रिश्ता तय होते होते रुक गया। बरेली से वापस दिल्ली लौटते हुए वे मथुरा भी आए तथा अपने साढू डॉक्टर बैजनाथ के घर कुछ समय रुके। जब डॉक्टर वैजनाथ ने  उनकी सारी बात सुनीं तो उन्होंने सेठ जी से कहा कि यदि आपको लड़की सुंदर व सुशील चाहिए तो मैं बताऊं भले घर का रिश्ता।
     इस पर सेठ मदन लाल जी ने कहा कि बताओ। तब डॉक्टर साहब ने पिताजी का नाम लेकर कहा कि उनकी लड़की गीता आपके घर परिवार के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है। इस पर सेठ जी बोले कि अरे वह तो हमारे यहां बहुत दिनों से बराबर चक्कर लगा रहे हैं किंतु हमने रिश्ता इसलिए नहीं किया कि मथुरा के कुछ लोगों ने कहा कि उनके यहां रिश्ता करोगे तो पछताना पड़ेगा क्योंकि आप जैसे प्रतिष्ठित परिवार की बारात की खातिरदारी तो दूर पीने को ठीक से पानीं भी नहीं मिलेगा। खैर डॉक्टर वैजनाथ ने उनकी सारी गलतफहमी दूर कर दी और वे संतुष्ट हो गए।
     इसके बाद उसी समय आनन फानन में रिश्ता तय हो कर सगाई भी हो गई। सेठ मदन लाल जी ने डॉक्टर वैजनाथ से कहलवाया कि हमें दहेज वगैरा कुछ नहीं चाहिए बस बारात की खातिरदारी अच्छी हो जाय। इसके पश्चात मुल्तान वालों की प्रतिष्ठा के अनुरूप बड़े धूमधाम से शादी हुई। शादी की शानदार व्यवस्था से सेठ मदन लाल जी गदगद हो गए। सेठ मदन लाल जी के दो पुत्र व एक पुत्री थी। बड़े पुत्र हरगोविंद जी की शादी तो हमारी बहन से हो गई उसके बाद उनकी पुत्री पुष्पा देवी की शादी राजस्थान के वरिष्ठ नेता तथा अलवर से लोकसभा सदस्य लाला काशीराम जी के पुत्र हेमकुमार से हुई और छोटे पुत्र विजय कुमार की शादी उड़ीसा के प्रमुख व्यवसाई (मैं मूलचंद हीरालाल) श्री द्वारका प्रसाद जी की पुत्री राधा देवी से हुई। जीजी की शादी के बाद जीजाजी उच्च शिक्षा हेतु दो वर्ष के लिए इंग्लैंड गए। उस जमाने में पढ़ाई के लिए विदेश जाना बहुत बड़ी बात मानीं जाती थी।
     हमारे महावर वैश्य समाज में सबसे पहले विदेश जाकर पढ़ाई उन्होंने ही की थी। जब वे पढ़ाई पूरी करके जहाज द्वारा लंदन से मुंबई आए और फिर मुंबई से डीलक्स गाड़ी द्वारा दिल्ली पहुंचे। रास्ते में मथुरा स्टेशन पड़ा उस समय मथुरा में उनका इतना जबरदस्त स्वागत हुआ कि कोई आसानी से विश्वास नहीं कर सकता। वह दृश्य आज भी मेरी आंखों के सामने घूम रहा है। हमारे नातेदार, रिश्तेदार, मोहल्ले, पड़ोस के तथा शहर भर के जान पहचान वाले और जो जान पहचान के नहीं थे ऐसे भी बहुत लोगों की संख्या में पहुंचे। इतनी भीड़ पहुंची कि स्टेशन का एक नंबर प्लेटफार्म खचाखच भर गया और तो और पुल के ऊपर भी भीड़ लग गई। फूल मालाओं की वर्षा होने लगी तथा डीलक्स गाड़ी रुकने का निर्धारित समय जो शायद दो मिनट था, से पांच मिनट और अधिक रुकी। गार्ड ने जब हरी झंडी दिखाई तब यह कहा था कि अब आपका स्वागत का कार्यक्रम पूरा हो चुका हो तो गाड़ी को आगे बढ़ाऊं। उस समय पूरे शहर में हल्ला मच गया के लाला नवल किशोर का जंवाई विलायत पढ़ कर आया है। बच्चे, बूढ़े, जवान तथा औरतों के झुंड समय से पहले ही पहुंच गए। स्टेशन पर मौजूद अन्य यात्री भी बड़े कौतूहल से यह तमाशा देखने लगे। ऐसा लग रहा था कि देश का कोई बहुत बड़ा नेता राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री आया है, जो उसका ऐसा भव्य स्वागत हो रहा है। हमारी माताजी और पिताजी तो फूले नहीं समा रहे थे। शायद शादी के मौके पर भी इतने खुश नहीं हुए होंगे। खुश होने की बात जो थी क्योंकि उनका जंवाई विलायत पढ़कर जो आया है वह भी लंदन यूनिवर्सिटी टॉप करके।
     मुझे यह पारिवारिक चर्चा आप सभी से करके बड़ा सुकून मिला है। जीजी मुझसे बड़ा स्नेह करती थी और मेरा भी उनसे बड़ा लगाव था। मैं छोटी उम्र में उनके पास कलकत्ता बहुत रहा था। थोड़ा बड़ा होकर मथुरा आया तो मेरा मन मथुरा में नहीं लगता था और पिताजी को मना कर अक्सर बिना पूर्व सूचना के कलकत्ता पहुंचकर जीजी को चौंका देता। अक्सर रक्षाबंधन वाले दिन सुबह तड़के पहुंचकर उन्हें सरप्राइस देने का आनंद ही कुछ और मिलता था। जीजी के गुंणों की झलक हमारी भांजी कविता एवं भांजे अरविंद में भी दिखाई देती हैं।
     कलकत्ता में हमारे जीजा जी हरगोविन्द गुप्ता बिरला उद्योग में बहुत बड़े पद पर कार्यरत थे उनकी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा की वजह से बिरला परिवार में उनकी बड़ी इज्जत होती थी और उन्हें पारिवारिक सदस्य के रूप में माना जाता था। हमारी भांजी कविता की शादी जब दिल्ली के ताज पैलेस में हुई थी तब स्वयं  सुदर्शन कुमार बिरला शादी में आये तथा काफी समय बिताया। मैं भी उस समय मौजूद था। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसी देवी स्वरूपा बहन मिलीं। आज भी मुझे उनका वही स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त है क्योंकि अक्सर स्वप्न में आकर दर्शन देती रहती हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को हमेशा सुख शांति में रखें।

विजय गुप्ता की कलम से

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