Thursday, May 9, 2024
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ऐसे खींचा महिला फांसी घर का फोटो

मथुरा। लगभग चार दशक पुरानीं बात है। एक बार मैं अपने छायाकार विशन कांत मिलिन्द को लेकर जेल गया वहां जेलर से महिला फांसी घर का फोटो खींचने की अनुमति मांगी जिसे जेलर ने यह कहकर मना कर दिया कि जेल नियमों के अनुसार यह संभव नहीं है। इसके बाद फिर हम लोग जेल अधीक्षक के पास गए उन्होंने भी अपने यहां के नियमों का हवाला देकर हमें टरका दिया।
     दरअसल उस समय पूरे देश में केवल मथुरा में ही महिला फांसी घर था और हमारा मन यह था कि इस पर एक स्टोरी लिखी जाय। बगैर फोटो के स्टोरी जमती नहीं इस लिए फोटो जरूरी था। जेलर और जेल अधीक्षक के द्वारा टरकाने और रूखा सा व्यवहार करने पर मेरी इच्छा और भी बलवती हो गई। मैंने अपने छायाकार से कहा कि मिलिन्द एक तरकीब मेरे दिमाग में आई है यदि तू सहयोग करें तो फोटो खिंच जाएगा। इस पर मिलिन्द जी बोले कि गुप्ता जी मेरी भी इच्छा बहुत है फोटो खींचने की बताओ क्या करूं?
     मैंने मिलिन्द से कहा कि इस भारी भरकम कैमरे को लेकर पेड़ पर चढ़ना है तुझे। वहां से बढ़िया पोज आ सकता है क्योंकि जेल के पिछवाड़े में एक बहुत ऊंचा पेड़ था और पेड़ भी उसी स्थान के बराबर था जहां महिला फांसी घर बना हुआ था। चूंकि महिला फांसी घर खुले में था और उसके ऊपर छत नहीं थी। जेलर ने हमें महिला फांसी घर दिखा तो दिया था किंतु फोटो खींचने की मना कर दी थी इस लिए मेरे दिमाग में सारा नक्शा बैठा हुआ था।
     अब हम बड़े जतन से चोरों की तरह धीरे-धीरे पेड़ पर चढ़े ताकि कहीं कोई देख न ले और कैमरे को भी क्षति न पहुंचे, कैमरा काफी बड़ा और कीमती था। धीरे-धीरे करके हम दोनों पेड़ के तने से थोड़ा नीचे तक पहुंच गए लेकिन दुर्भाग्य हमारा जो एंगल सही नहीं बना। अब मेरा माथा ठनक गया तथा बड़ी खीज हुई, धीरे धीरे हम दोनों पेड़ से नींचे उतर आए तथा वापस लौटने के बजाय आपस में अठ्ठा पंजा लगाने लगे कि और क्या तरीका हो सकता है? साथ ही जेल के पिछवाड़े में ऐसे कई चक्कर लगाए जैसे वारदात करने से पहले अपराधी रैकिंग करते हैं। जब कोई तरकीब काम न आई तो फिर भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभु इस अपमान जनक स्थिति से बचने का कोई रास्ता सुझाओ क्योंकि अपना सा मुंह लेकर वापस खाली हाथ लौटना बेइज्जती जैसा लग रहा था।
     इसी दौरान मेरा ध्यान महिला फांसी घर वाली चाहरदीवारी के बाहर पड़े मलबे के ढेर पर गया जो शायद जेल के अन्दर हुए निर्माण कार्य से निकला हुआ होगा। मैंने मिलिन्द से कहा कि मैं इस मलबे के ढेर पर चढ़कर बैठ जाता हूं तू मेरे कन्धे पर कैमरा लेकर चढ़ जा और फिर मैं धीरे धीरे खड़ा हो जाऊंगा तब शायद बात बन जाय। चूंकि मिलिन्द के जवानी के दिन थे और उसके ऊपर भी दुर्लभ फोटोग्राफी करने का भूत सवार था। हम दोनों ने ऐसा ही किया मैं मलबे के ढेर पर उकड़ूं बन कर बैठ गया और मिलिन्द धीरे धीरे मेरे कंधों पर चढ़कर खड़ा हो गया।
     उसके सवा मनी वजन को लेकर मैं बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे दीवाल पकड़ कर खड़ा हुआ और उससे पूंछा कि पोज बना कि नहीं? इस पर मिलिन्द बोला कि गुप्ता जी पोज कहां से बनेगा दीवाल तो बहुत ऊंची है, तब मैंने उससे कहा कि कैमरे को उल्टा कर दे क्योंकि उस कैमरे के चारों और लोहे की मोटी पत्ती का चौखटा लगा हुआ था पुराने जमाने में बड़े कैमरों में ऐसा ही सिस्टम रहता था। मिलिन्द ने ऐसा ही किया तब फिर मैंने अपने झुके हुए सिर की मुद्रा में ही उस से पुनः पूछा कि कैमरा उल्टा किया या नहीं उसने कहा कि कैमरा तो उल्टा कर लिया पोज भी बढ़िया आ जाएगा क्योंकि कैमरा बाउंड्री के ऊपर तक चला गया है किंतु कैमरे का बटन कैसे दबाऊं? वह तो बहुत ऊपर हो गया है और मेरा हाथ वहां तक पहुंच नहीं पा रहा है। मैंने कहा कि ठीक है अब तू नींचे उतर आ।
     खैर वह धीरे-धीरे मेरे कंधों से उतरा और फिर हम दोनों आपस में माथापच्ची करने लगे कि अब क्या करें? इतना सब करने के बाद भी बात बनते बनते बिगड़ रही थी और लक्ष्य को प्राप्त किए बगैर खाली हाथ लौटना मुझे बहुत खराब लग रहा था ठीक उसी प्रकार जैसे लड़ाई के मैदान में परास्त होकर वापस आने जैसा। इसके पश्चात फिर भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभु यह क्या हो रहा है? आप कृपा करो कुछ युक्ति सुझाओ हमारी स्थिति ठीक वैसी  हो रही थी जैसे सांप सीढ़ी के खेल में गोटी 99 तक पहुंच जाय और फिर उसे सांप डस कर नीचे ला पटके यानीं कि सफलता के कगार तक पहुंच कर भी सफलता दूर भाग रही थी। इधर असफलता की खींज और दूसरी और किसी के द्वारा देख लेने का डर क्योंकि देख लेने पर हम दोनों की क्या गति होती इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। शायद जेल अधिकारी एक बार तो सारी पत्रकारिता और फोटोग्राफी भुला देते।
     खैर भगवान ने हमारी सुनीं और एक युक्ति मेरे दिमाग में आ गई। मैंने इधर उधर नजर दौड़ाई और एक दो फुट लंबी डंडी तलाश ली तथा मिलिन्द से कहा कि अब तू फिर मेरे कंधों पर कैमरा लेकर खड़ा हो जा और उसने ऐसा ही किया डंडी को मैं अपने हाथ में पकड़े रहा डंडी को हाथ में पकड़े पकड़े और दीवाल का सहारा लेकर मैं बड़ी मुश्किल से उठ कर खड़ा हो पाया तथा खड़े होकर मिलिन्द को धीरे-धीरे हाथ ऊंचा करके डंडी पकड़ाई, मिलिन्द ने भी बड़ी सावधानी से कैमरे को उल्टा करके बाउंड्री के ऊपर तक पहुंचा दिया और मोटी मोटी लोहे की पत्तियों के चौखटे को एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ में लगी डंडी से बटन दबा कर क्लिक कर दी।
     इसके बाद वह धीरे-धीरे उतरा तथा फिर हम दोनों स्कूटर स्टार्ट कर वहां से सिर पर पैर रखकर भागे और सीधे भैंस बहोरा जंक्शन रोड स्थित मिलिन्द की दुकान पर जाकर रील धोई और निगेटिव चैक किए। नेगेटिव को देखकर हम दोनों की खुशी का पारावर नहीं रहा क्योंकि महिला फांसी घर का पोज बड़ा शानदार जो आया था। दूसरे दिन आज अखबार में फोटो के साथ समाचार छपते ही जेल में हड़कंप मच गया कि इनको अंदर घुसने किसने दिया और सब कर्मचारी एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लगे तथा जेल के अधिकारी हमारे कार्यालय तक दौड़े आए कि आपको अंदर किसने जाने दिया? आपने यह क्या किया? अब हमको जवाब देते नहीं बनेगा हमारी नौकरी पर बन आएगी आदि आदि।
     बाद में फिर उनको सब बता समझा दिया कि भाई इसमें परेशान होने की क्या बात है? आपने अपनी नौकरी की ड्यूटी पूरी की और हमने अपनी पत्रकारिता और फोटोग्राफी का धर्म निभाया। इस सफलता का श्रेय में अपने को कम और मिलिन्द को ज्यादा देता हूं क्योंकि और कोई फोटोग्राफर होता तो उसे अपने कीमती कैमरे की सुरक्षा की चिंता ज्यादा होती और शायद पकड़े जाने पर जेल कर्मचारी जो सबक सिखाते उसका खौफ भी रहता। इसलिए दूसरा फोटोग्राफर शायद यह सब करने के लिए तैयार नहीं होता। उस मंन्दे जमाने में भी शायद उस कैमरे की कीमत हजारों में थी।
     इस स्टोरी को लिखने के पीछे मेरा संदेश यह है कि यदि हम किसी भी लक्ष्य को लेकर चलें तो उसमें आने वाली कठिनाइयों से तनिक भी विचलित न हों और कठिनाइयों के समय बार-बार ईश्वर का स्मरण कर सफलता की प्रार्थना करें तो लक्ष्य स्वयं हमारी ओर चुंबक की तरह खिंचा चला आएगा।

विजय गुप्ता की कलम से

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