मथुरा। कान्हा की इस नगरी में एक देशभक्त ऐसे हुए जिन्हें अदालत ने कभी भी सजा नहीं सुनाई पर जेल गए सैकड़ो बार। पढ़ने और सुनने में यह बात बड़ी अटपटी सी लगती है किंतु है एकदम सच। इन गुमनाम से स्वतंत्रता सैनानी का नाम है श्री भगवान दास गर्ग उर्फ भग्गोमल पंसारी।
स्व. भगवान दास जी बड़े सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। उनकी होली गेट पर किराने की दुकान थी, जो आज भी है। इस समय दुकानदारी का कार्य उनके सबसे छोटे पुत्र गिरधारी लाल गर्ग देखते हैं। भग्गो मल जी के तीन पुत्र हैं। सबसे बड़े पुत्र रविकांत गर्ग, मझले मूलचंद गर्ग और सबसे छोटे गिरधारी लाल गर्ग।
अब मैं मूल मुद्दे पर आता हूं। दर असल भगवान दास जी को जेल में खाद्य सामग्री सप्लाई करने का काम मिला हुआ था, इसीलिए उन्हें अक्सर जेल जाना पड़ता था। अब बात आती है कि जेल में खाद्य सामग्री सप्लाई करने मात्र से ही फिर वे कैसे देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी हो गए?
बात तो बिल्कुल सही है किंतु इस बात के अंदर एक और बहुत बड़ी बात भी छिपी हुई है। बात के अंदर की बात पहले बात से भी ज्यादा बजनी है, जो यह सिद्ध करती है कि स्व. भगवान जी के अंदर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी और उन्होंने वह काम किया जो आंदोलन करके जेल में बंद होने से भी ज्यादा मूल्यवान था। उनके इसी कार्य की वजह से ही वे स्वतंत्रता संग्राम के महान सैनानी कहलाने के पात्र हैं। यह बात दूसरी है कि वे गुमनाम से रहे और उन्होंने अपनी देशभक्ति का ढोल नहीं पीटा सिर्फ अपने परिजनों से जब कभी चर्चा कर लेते थे।
अब आगे बढ़ता हूं ताकि पाठकों की जिज्ञासा शांत हो जाय। बात यह थी की जेल में खाद्य सामग्री सप्लाई करने के दौरान भगवान दास जी की जान पहचान जेलर व अन्य कर्मचारियों से बहुत अच्छी हो गई। इस जान पहचान का लाभ वे उन स्वतंत्रता सेनानियों को भरपूर दिला देते थे जिन्हें अदालत द्वारा कठोर सश्रम कारावास का दंड दिया जाता था। गुपचुप रूप से वे आजादी के दीवानों को कठोर श्रम से बचवा दिया करते। इसके अलावा इन सैनानियों का संदेश व कुशल क्षेम उनके घरों तक और फिर उनके परिवारी जनों की कुशल क्षेम व हाल-चाल सैनानियों तक पहुंचाने का कार्य गुपचुप रूप से किया करते थे।
कहते हैं कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। अन्ततोगत्वा वही हुआ जिसकी आशंका भगवान दास जी को अक्सर बनीं रहती थी। किसी ने अंग्रेज हुकूमत से चुगली करके भगवान दास जी की देशभक्ति का भंडाफोड़ कर डाला और फिर न सिर्फ उनकी सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट बंद कर दिया गया बल्कि उन्हें प्रताड़ित करने के लिए रात्रि के समय शहर भर के मुख्य सरकारी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए ड्यूटी लगा दी, जिनमें डाकघर, बिजली घर, लेटर बॉक्स आदि थे। बिजली घर का उप स्टेशन होली गेट पर था जहां आज अग्रवाल धर्मशाला है। पूरी रात भगवान दास जी लाठी लेकर होली गेट के आसपास के सभी सरकारी प्रतिष्ठानों की रखवाली करते थे।
इस संबंध में भगवान दास जी के मझले पुत्र मूलचंद गर्ग बताते हैं कि हमारे पिताजी ने जिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मदद की उनमें डॉ.श्रीनाथ भार्गव, मुकुंद लाल गर्ग, राधा मोहन चतुर्वेदी एवं डॉ. के. सी. पाठक आदि प्रमुख हैं। मूलचंद जी कहते हैं कि हमारे पिताजी को सख्त हिदायत थी कि यदि होली गेट क्षेत्र के किसी भी सरकारी प्रतिष्ठान को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंची तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी।
मूलचंद गर्ग बताते हैं कि हमारे पूर्वज पहले सदर में रहते थे। जब सन् 1924 में भयंकर बाढ़ आई तब हमारी दादी ने पिताजी को जैसे तैसे बचाया। इसके बाद हमारा परिवार भीकचंद सेठ गली में डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी के मकान में किराए पर रहा। बाद में गताश्रम टीले पर आकर बसे।
भगवान दास जी के तीन पुत्र हैं। सबसे बड़े रविकांत गर्ग, दूसरे मूलचंद गर्ग और तीसरे गिरधारी लाल गर्ग। तीनों ही अलग-अलग वैरायटी के हैं। रविकांत जी तेज तर्रार हैं। मूलचंद गर्ग न ज्यादा तेज तर्रार हैं और ना ही जरूरत से ज्यादा सीधे। वे मध्यम श्रेणी के हैं, पर हैं एकदम सिद्धांत वादी विचारों के। ज्यादा बकर-बकर और चकर-चकर के बजाय बोलते नपा तुला व एकदम सटीक हैं। तीसरे गिरधारी लाल अपने पिता की भांति बहुत सीधे और सरल स्वभाव के हैं। वे अपने पिताजी के मूल कारोबार को बखूबी संभाल रहे हैं। स्व. भगवान दास जी के सद्कार्यों का ही परिणाम है कि आज उनका परिवार खुशहाल रहते हुए इज्जत की जिंदगी जी रहा है।
बड़े पुत्र रविकांत जी भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता हैं। इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के बाद भी उनकी एक सादगी बेमिसाल है। वह यह कि वे आज भी बगैर बिस्तर बिछईया बिछाए खरैरी खाट पर सोते हैं। यह बात उन्होंने मुझे नहीं बताई और ना ही उनके किसी घर वाले ने। फिर यह राज मुझे कैसे पता चला?
ऐसा तो संभव है नहीं कि मैं उनके शयनकक्ष में उझक कर देख आया होऊं कि खरैरी खाट पर सो रहे हैं ये हजरत। अब बताता हूं राज की बात कि यह राज मुझे कैसे पता चला? बात यह है कि कभी-जभी मेरी इनसे बात होती हैं। तब ऐसा आभास हो जाता है कि ये खरैरी खाट पर सो कर उठे हैं। बचपन से हम सुनते आए हैं कि खरैरी खाट पर सोकर उठने वाले की बातचीत का लहजा खरैरा हो जाता है। इसीलिए जब कोई खरैरा बोलता है तो सामने वाला कह देता है कि “खरैरी खाट पर सो कै उठौ है का”।
रविकांत जी हमारे अंतरंग मित्रों में से हैं। मेरा सुझाव है कि वे खरैरी खाट पर सोना बंद कर दें। यह मैं मानता हूं कि वे बड़े स्वाभिमानी और ठसक मिजाज व्यक्ति हैं। जब स्वाभिमान पर बन आती है तो वे बड़ी-बड़ी हस्तियों से टक्कर ले बैठते हैं। उनके जैसे कद्दावर नेता की श्रेणीं केंद्रीय मंत्री की है। उनसे जूनियर भी केंद्रीय मंत्री बन चुके हैं। एकाध केंद्रीय मंत्री तो उनके पैर भी छूते हैं। खैर जो भी है। भले ही वे अपनी काबिलियत के अनुकूल ऊंचाई नहीं पा सके किंतु लोगों के दिलों की ऊंचाई में तो शिखर तक पहुंचे हुए हैं। मेरी उनको हार्दिक शुभकामनाएं, ईश्वर उन्हें शतायु करें।
विजय गुप्ता की कलम से
संपर्क नंबर रविकांत गर्ग 8171545777
941228777
संपर्क नंबर मूलचंद गर्ग 8273860070
9412280260
संपर्क नंबर गिरधारी लाल गर्ग 9149183833