मथुरा। कीट पतंगों से किसानों की फसल बर्बादी को रोकने के लिए जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा के पॉलीटेक्निक संस्थान के प्रोफेसरों ने एंटीइंसेक्ट ड्रॉन तकनीक सुझाव साझा किया है। इसका पेटेंट भी पब्लिश हो चुका है।
जीएलए के डीन रिसोर्स जनरेशन व प्लानिंग डॉ. दिवाकर भारद्वाज, प्रो. विकास शर्मा के दिशा निर्देशन में पॉलीटेक्निक संस्थान के लेक्चरर आदित्य गोस्वामी ने ‘एंटी इंसेक्ट ड्रोन विद इलेक्ट्रोमेगनेटिक वेव रेडिएशन‘ पर काफी रिसर्च के बाद सुझाव तैयार किया है। इस सुझाव में उन्होंने दावा किया है कि एंटीइंसेक्ट एंटीइंसेक्ट ड्रॉन तकनीक के माध्यम से इसमें से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैगनेटिक किरण कीट पंतगों के ऊपर काफी प्रभाव डालेगी, जिससे वह फसल को नुकसान पहुंचाने में नाकामयाब साबित होंगे।
आदित्य गोस्वामी ने बताया कि इस ड्रॉन में एक सर्किट लगी होगी, जो कि करीब दो वर्ष तक ठीक प्रकार से कार्य करेगी। ड्रॉन में इस सर्किट के माध्यम से इलेक्ट्रोमेगनेटिक किरण उत्पन्न होगी, जो कि ड्रोन उड़ने के दौरान फसल के ऊपर इलेक्ट्रोमेगनेटिक किरणों का बिखराव होगा। फसल के ऊपर अथवा उसके आसपास बैठे कीट पंतगों पर काफी प्रभाव डालेगा। उन्होंने बताया कि अधिकतम कीट पंतगों में जान न होने के कारण इस इलेक्ट्रोमेगनेट की किरण को वह झेल नहीं पायेंगे और वहीं ढेर हो जायेंगे। बशर्त किसान यह ड्रोन करीब 1 मीटर की ऊंचाई पर उड़ाना होगा और रिमोर्ट के माध्यम से कंट्रोल करना होगा।
डीन रिसोर्स जनरेशन व प्लानिंग डॉ. दिवाकर भारद्वाज ने बताया कि अधिकतर देखा जाता है कि किसान विभिन्न तरीकों के कीटों से बचाने के लिए अपनी फसल के ऊपर रासायनिक दवाईयों का छिड़काव करता है। इन रासायनिक दवाईयों के कारण लोगों में विभिन्न तरीकों की बीमारियां उत्पन्न होने का ड़र रहता है, लेकिन एंटीइंसेक्ट ड्रॉन तकनीक में न तो किसी दवाई का प्रयोग किया गया और न ही किसी रासायनिक कैमिकल का प्रयोग। इस ड्रोन में सिर्फ एक सर्किट लगेगी, जो कि इलेक्ट्रोमेगनेटिक किरण पैदा करेगी और फसल के ऊपर बिखरेगी।
डीन रिसर्च प्रो. अनिरूद्ध प्रधान एवं एसोसिएट डीन रिसर्च प्रो. कमल शर्मा ने बताया कि यह आधुनिक तकनीक किसानों को फायदा पहुंचाने में कारगर साबित होगी। सबसे सफलतम बात यह है कि इस तकनीक सुझाव का पेटेंट पब्लिष हो चुका है। ग्रांट होने के बाद इस प्रोटोटाइप को तैयार मार्केट में लाने के प्रयास किए जायेंगे।