Wednesday, May 22, 2024
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देवताओं के आव्हान की भाषा को बचाये रखना चाहता है संस्कृत भारती

  • वृन्दावन में चल रहा है बीस दिवसीय प्रशिक्षण शिविर

वृंदावन। संघ का संस्कृत भारती सन 1981 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन के रूप में संस्कृत भारती की स्थापना की गयी। वर्तमान में संगठन का मुख्यालय दीनदयाल उपाध्याय मार्ग नई दिल्ली में है। संस्कृत भाषा दुनिया की प्राचीन भाषाओं में से एक है।परंतु इसकी विशेषता यही है कि इसका व्याकरण विशुद्ध है।और अंग्रेजी की तरह एक उच्चारण वाले अलग अलग न तो शब्द है और न ही द्विअर्थी शब्द है लेकिन समानार्थी शब्दों की अधिकता भी केवल सँस्कृत में ही है।

यही कारण है कि विश्व की प्राचीन भाषाओ में से एक वैज्ञानिक भाषा है। इस बात पर यूरोप और नासा के वैज्ञानिक भी अपनी मुहर लगा चुके हैं। अब बात करते हैं।विश्व के सबसे प्रचीन सनातन धर्म की जिसके ऋग्वेद को सबसे पुराना माना जाता है और वह सँस्कृत में लिखा हुआ है।यही कारण है कि संस्कृत को देव वाणी कहा जाता है।क्योंकि देवताओं को बुलाना है तो उन्हें संस्कृत ही समझ आती है। भले ही आज हिंदुओं के 16 संस्कारों में से तीन या चार ही प्रचनल में रह गए हैं।लेकिन बिना संस्कृत के वह भी अधूरे ही माने जाएंगे।इसलिये प्रकृति को चलाने वाले देवताओं की अगर कोई भाषा है तो वह संस्कृत ही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुसांगिक संगठन संस्कृत भारती इसके प्रचार प्रसार में महती भूमिका निभा रहा है।देश भर में स्थान स्थान पर संस्कृत के निशुल्क शिविर प्रतिवर्ष लगाए जाते हैं। विद्धानों का ऐसा मत है कि संस्कृत ह्रदय से बोली जाने वाली भाषा है।अर्थात आपके ह्रदय के भाव व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम सँस्कृत भाषा है।जब आज की अनेक भाषाओं का दुनिया मे अता पता भीनही था तब सँस्कृत का व्याकरण विशुद्ध रूप में मौजूद था।जिसका उदाहरण पाणिनि व्याकरण से मिलता है।

भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम होती है लेकिन बोली में मिठास और अभिव्यक्ति की स्पष्टता भाषा पर आधारित है और यह भाषा के व्याकरण पर निश्चित है ।जिसमे हजारों वर्ष बाद भी कोई गलती न निकली हो ऐसी भाषा संस्कृत ही है।संस्कृत भारती एक साहसिक और जटिल कार्य को सरल बनाने का कार्य वर्तमान समय मे कर रहा है। ऐसे ही प्रशिक्षण शिविरों को चलाने के लिए संस्कृत भारती और सोऽहम आश्रम वृंदावन के संयुक्त तत्वावधान में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि मथुरा,एटा, मैनपुरी से विधानपरिषद सदस्य श्री ठाकुर ओमप्रकाश सिंह ने संस्कृत भारती द्वारा चलाए जा रहे संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के अभियान की सराहना करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा विश्व की सभी भाषाओं की जननी है और संस्कृत भाषा सृष्टि की सबसे प्राचीन भाषा है। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार में लगे हुए सभी छात्र छात्राओं का उत्साह वर्धन करते हुए कहा कि आज युवाओं में संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वर्गाधिकारी परम् पूज्य स्वामी गौरवानंद जी महाराज ने की । ब्रज प्रान्त संगठन मंत्री आचार्य श्रवण कुमार जी ने संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण वर्ग, अभ्यास वर्ग,नैपुण्य वर्ग व बालकेन्द्रों के विषय में विस्तार से जानकारी दी। संस्कृत भारती मथुरा महानगर अध्यक्ष आचार्य ब्रजेन्द्र नागर ने कहा कि संस्कृत भाषा को जनसाधारण की भाषा बनाने के लिए युवाओं में आकर्षण पैदा करने की आवश्यकता है। संस्कृत भाषा को वैज्ञानिकों ने भी कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयोगी बताया है।

सत्र का संचालन करते हुए संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त सहमंत्री गौरव गौतम ने कहा कि संस्कृत भाषा को घर घर तक पहुंचाने के संकल्प को संस्कृत भारती के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। जिससे अधिक से अधिक लोगों को अपने धर्मग्रंथों को पढ़ने का अभ्यास हो सकेगा।

इस अवसर पर महानगर अध्यक्ष एवं मथुरा, अलीगढ़ विभाग संयोजक आचार्य ब्रजेन्द्र नागर, महानगर प्रचार प्रमुख रामदास चतुर्वेदी पार्षद ,महानगर शिक्षण प्रमुख हरिश्चंद्र जी, एवं हरस्वरुप यादव द्वारा सभी अतिथियों का चंदन पुष्प माला अंगवस्त्र भेट कर सम्मान किया गया। षष्ठ दिवस उदघाटन सत्र का शुभारंभ मां सरस्वती जी के सम्मुख वैदिक विधि विधान से अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।शिक्षण प्रमुख कोमल वर्मा, आरती राजपूत द्वारा ध्येय मंत्र ष्पठामि संस्कृतं नित्यं वदामि संस्कृतं सदाष् का पाठ किया गया। कीर्ति निर्भया द्वारा संस्कृत गीतष्मृदपि च चन्दनमस्मिन देशेष् प्रस्तुत किया गया ।अंत में धन्यवाद ज्ञापन टीकाराम जी पांडेय द्वारा किया गया।सत्र का समापन कल्याण मंत्र से किया गया।


वर्ग व्यवस्थाओं में प्रमुख रूप से संस्कृत भारती ब्रज प्रान्त न्यास सचिव गंगाधर अरोड़ा, कार्यालय प्रमुख हरस्वरुप यादव, संदीप चौधरी,आरती राजपूत, कोमल वर्मा, आदि का विशेष सहयोग रहा और सतीश शर्मा, राम शर्मा, राजेन्द्र शर्मा, सुधाकर मिश्रा,माधव शरण श्रीमती वर्षा अरोड़ा आदि भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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