Thursday, April 25, 2024
Homeडिवाइन (आध्यात्म की ओर)राधाकुण्ड के झुलनतला पर राधाकृष्ण संग झूला झूलती थी सखियाँ, आधुनिकता की...

राधाकुण्ड के झुलनतला पर राधाकृष्ण संग झूला झूलती थी सखियाँ, आधुनिकता की दौड़ में सिमट गई परंपराएं

राधाकुण्ड का झूलन तला सावन में अपने अस्तित्व को ढूंढता

कमल सिंह यदुवंशी
गोवर्धन। सावन में कृष्ण मुरार झूला झूले कदम की ढाल, कोयल कु के कु के गाये मनहार, सावन में कृष्ण मुरार झूला झूले कदम की ढाल, राधा के संग श्याम बिहारी, झूटा देवे सखियाँ सारी, युगल छवि पे जाऊ मैं बलिहारी, झूलन की ये रुत मतवाली, झूम रही है ढाली ढाली, सावन में कृष्ण मुरार झूला झूले कदम की ढाल आदि श्रावण गीत उस वक्त सखियाँ गया करती थीं जब सावन महीना में राधाकुंड पर स्थित झूलन तला पर राधाकृष्ण संग सखियाँ झूला झूलती थी, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में भिविन्न परंपराएं सिमट कर रह गई।राधाकुण्ड का झूलन तला सावन में आज अपने अस्तित्व को ढूंढ रहा है।

ब्रज लोक कला फाउंडेशन के निदेशक पंकज पंकज खंडेलवाल ने बताया कि द्वापर युग में राधारानी कुंड के तट पर स्थित कदम के वृक्ष पर झूला डाल कर राधा कृष्ण संग सखियाँ झूला झूलती थी। राधारानी कुंड जल खेल्ली कर मनोरंजन किया जाता है और सांय को अरिष्ठ वन में सखियाँ संग राधाकृष्ण रास रचाते थे।


इसी परम्परा को निर्वहन करने के लिए राधाकुण्ड तट पर झुलनतला बनाया गया यहां राधाकुण्ड की युवतियां झुलनतला पर सावन महीना आते ही मल्हारें गूंजने लगती थी, युवतियां श्रवणी गीत गाकर झूला झूले का आनंद लेती थीं। जिन नव विवाहिता वधुओं के पति दूरस्थ स्थानों पर रहते थे उनको इंगित करते हुए विरह गीत सुनन अपने आप में लोक कला ज्वलंत उद्धहरण हुआ करते थे। लेकिन आज राधाकुण्ड के झुलनतला की परंपराएं आधुनिकता की दौड़ में सिमट रह गई। झूलन तला सावन में अपने अस्तित्व को ढूंढने पर विवष है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments