Monday, April 29, 2024
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अब प्रदूषण में गुजर-बसर कर रही जिंदगी: डा. जोशी

  • -प्रगति से प्रकृति की ओर साइकिल यात्रा का जीएलए विश्वविद्यालय में हुआ स्वागत
  • -जीएलए के हरे-भरे वातावरण को देख काफी खुश नजर आये पर्यावरणविद् जोशी


मथुरा। आगरा से चलकर सीधे जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा में पहुंची ‘प्रगति से प्रकृति की ओर‘ साइकिल यात्रा का भव्य स्वागत डीन रिसोर्स जनरेशन एंड प्लानिंग डाॅ. दिवाकर भारद्वाज ने किया। स्वागत सत्कार के बाद पर्यावरणविद पद्मश्री डाॅ. अनिल जोशी विश्वविद्यालय के पदाधिकारी और छात्रों से रूबरू हुए।


जीएलए विश्वविद्यालय में रूबरू होते हुए पर्यावरणविद् डाॅ. जोशी ने कहा कि धरती, आकाश या फिर समुद्र यह तीनों ही किसी न किसी प्रदूषण की चपेट में हैं। दुनियाभर के जो अध्ययन सामने आ रहे हैं, उससे लगता है कि प्रदूषण की चपेट में आने से समुद्र पर संकट मड़रा रहा है। लाखों टन कचरा समुद्र में जा रहा है। इसका सीधा असर जल जीवों पर तो पड़ ही रहा है, बल्कि उसका औसतन तापक्रम बढ़ने से समुद्र के कार्बन सोंखने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ रहा है। स्पेस में तीन हजार सेटेलाइट बिना ही प्रयोग के घूम रहे हैं, जिनमें से दो हजार वर्तमान समय में हैं। करीब 35 हजार छोटे-छोटे टुकड़े हैं, जो कि भविष्य के लिए खतरा हैं। अगर धरती की बात जाय तो दुनिया जानती है कि इसका तापक्रम क्यों बढ़ रहा है। क्योंकि क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग के बडे़ मुद्दे खडे़ हो चुके हैं। अब लोगों को चाहिए कि विकास हो, लेकिन इसमें सहूलियत सबसे बड़ा मुद्दा है। पिछले 10 वर्षों में देखने को मिल रहा है कि विकास के नाम पर काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ऐसे में एयर इंडेक्स क्वालिटी बहुत खराब हो चुकी है और 90 प्रतिशत लोग किसी न किसी पोलुशन की चपेट में हैं। देश के 30 से अधिक शहर तो किसी न किसी संकट से घिरे हुए हैं।


उन्होंने कहा कि जिस प्रकार कोरोना आया और उसने फेफड़ों पर प्रभाव डाला, उसी प्रकार एयर पोलुशन भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। ठीक वैसे ही यह सिद्धांत बना हुआ है कि जब-जब पानी की कमी होगी तो पानी भी प्रदूशित मिलेगा। बाजारों में वाटर प्यूरिफायर को लेकर सवाल खड़ा हुआ है, जो कि आर्थिक प्रदूशण है। अगर नदियों की बात की जाय तो नर्मदा, गोदावरी कई और नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। हम लोग बिल्कुल भी इनकी सफाई को लेकर चिंतित नहीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी यह साइकिल यात्रा समुद्र से पहाड़ों तक है, जो कि करीब 3000 किलोमीटर दूरी तय करेगी। यह यात्रा विभिन्न प्रदेशों मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और दिल्ली पर्यावरण का सन्देश देकर उत्तराखंड पहुंचेगी।
डीन रिसोर्स जनरेशन एंड प्लानिंग डाॅ. दिवाकर भारद्वाज ने बताया कि जीएलए में पर्यावरण को लेकर काफी सतर्कता बरती जाती है। विद्यार्थियों को प्लास्टिक का प्रयोग न करने एवं वाटर कंज़र्वेशन सहित विभिन्न ईको सिस्टम के बारे में जानकारी दी जाती है।


चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर नीरज अग्रवाल ने कहा कि पर्यावरणविद् पदमश्री डाॅ. जोशी जिस उम्र में देषवासियों में पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने की जो अलख जगा रहे हैं, वह हम सभी के लिए सोचनीय तो है ही, बल्कि गंभीर यह भी है कि हम पर्यावरण संरक्षण को लेकर सजग क्यों नहीं हैं। एक व्यक्ति के जागरूकता से यह संभव नहीं है। इसके लिए सभी को आगे आने की जरूरत है।


जीएलए हरा-भरा और सुंदर
जीएलए विश्वविद्यालय का भ्रमण करने के दौरान पर्यावरणविद डाॅ. जोशी काफी खुश नजर आये। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जीएलए में हरा-भरा माहौल है। कदम-कदम पर पेड़-पौधों की बहार है। इससे विद्यार्थी का मन प्रफुल्लित रहता। मन शांत रहता है, स्वच्छ हवा, शुद्ध वातावरण और सुंदर पेयजल मन और मस्तिष्क को हरित कर देता है और पढ़ाई में मन लगता है।


मथुरा और आगरा में यमुना चिंता का विषय
सबसे बड़ा चिंता विषय का है कि मथुरा और आगरा के लोग कैसे और किस प्रकार यमुना जल का आचमन कर रहे हैं। जबकि यमुना नदी प्राण, धमिनी है। जिस प्रकार लोगों के रक्त प्रवाह कभी-कभी रूक जाती तो वह अस्पताल की ओर रूख करता है, लेकिन यमुना नदी के जल की प्रवाह प्रदूषित होने से रूक जायेगी तो इसे कहां लेकर जायेंगे। इसलिए जागो और जगाओ।

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