Monday, April 29, 2024
Homeन्यूज़न्यूज़समय पूर्व जन्मे शिशुओं के लिए वरदान बना के.डी. हॉस्पिटल

समय पूर्व जन्मे शिशुओं के लिए वरदान बना के.डी. हॉस्पिटल

एनआईसीयू में भर्ती 12 शिशुओं में छह का वजन डेढ़ किलो से कम

मथुरा। शिशु का जन्म हर मां के लिए बहुत ही खूबसूरत अहसास है। हर मां और शिशु का सम्बन्ध गर्भ से ही शुरू हो जाता है। लेकिन कुछ शिशु मां की अस्वस्थता या दीगर कारणों से नौ महीने पूरे होने से पहले ही जन्म ले लेते हैं ऐसे बच्चे को प्रीमैच्योर बेबी कहा जाता है। प्रीमैच्योर बेबी मां के गर्भ में पर्याप्त समय तक नहीं रह पाता इसलिए जन्म के बाद ऐसे शिशुओं को अन्य शिशुओं के मुकाबले अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे शिशुओं की देखभाल और उपचार के लिए के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर इस समय वरदान साबित हो रहा है।
के.डी. हॉस्पिटल प्रीमैच्योर शिशुओं के उपचार और देखभाल के लिए इसलिए भी उपयुक्त है क्योंकि यहां सुयोग्य चिकित्सकों और नर्सेज की टीम होने के साथ ही अत्याधुनिक वेंटीलेटर, सीपैप, फोटोथेरेपी, इंक्यूवेटर, सरफेक्टेंट आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं। डॉ. के.पी. दत्ता के मार्गदर्शन और डॉ. संध्या लता, डॉ. उमेश, डॉ. सुप्रिया, डॉ. मुदासिर तथा डॉ. दिव्यांशु अग्रवाल की देखरेख में इस समय यहां के एनआईसीयू में एक दर्जन शिशुओं का उपचार किया जा रहा है। इन शिशुओं में छह शिशु तो डेढ़ किलो से भी कम वजन के हैं।
विभागाध्यक्ष शिशु रोग डॉ. के.पी. दत्ता का कहना है कि समय पूर्व जन्मे बच्चे का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है, इसलिए उन पर कई प्रकार के स्वास्थ्य खतरे रहते हैं। इनमें से कुछ खतरे तो कुछ समय के अंतराल में ही लुप्त हो जाते हैं लेकिन कुछ जीवन भर के लिए शिशु के साथ जुड़ सकते हैं। डॉ. दत्ता का कहना है कि ऐसे शिशुओं को गहन एनआईसीयू में देखभाल की जरूरत पड़ती है। समय पूर्व जन्मे शिशुओं के फेफड़े पूर्ण रूप से विकसित नहीं होने के कारण वे प्राय: सांस सम्बन्धी बीमारियों से पीड़ित रहते हैं। ऐसे शिशु जीवन के पहले वर्ष तक सांस लेने की समस्या से जूझ सकते हैं। भविष्य में ऐसे शिशुओं में अस्थमा होने की सम्भावना भी ज्यादा होती है।
विशेषज्ञ शिशु रोग डॉ. संध्या लता का कहना है कि प्रीटर्म शिशुओं में अपरिपक्व मस्तिष्क एक आम बात है। ऐसे शिशु जो गर्भावस्था के 30-32 हफ्तों की समयावधि में जन्मे होते हैं, उनके मस्तिष्क का वजन सामान्य अवधि में जन्मे शिशु के मुकाबले केवल दो-तिहाही ही होता है जो आगे जाकर कई प्रकार के न्यूरोलॉजिकल विकार जैसे एडीएचडी, सेरेब्रल पाल्सी और ऑटिज्म को बढ़ावा दे सकता है। डॉ. संध्या लता का कहना है कि समय पूर्व जन्मे कुछ शिशुओं में एपनिया नाम की बीमारी भी पायी जाती है। यह आमतौर पर 20 सेकेंड या उससे अधिक समय के लिए सांस रुकने की स्थिति को कहते हैं। यदि बार-बार आपके शिशु की सांस आना बंद हो रही है, तो उसे शिशु रोग विशेषज्ञ को जरूर दिखा लें।
डॉ. संध्या लता बताती हैं कि गर्भावस्था के 34 सप्ताह से पहले पैदा होने वाले बच्चों में श्वसन संकट सिंड्रोम या आरडीएस एक आम बात है। आरडीएस से पीड़ित शिशुओं में सर्फेक्टेंट नामक प्रोटीन नहीं होता है जिसमें फेफड़ों में हवा का आदान-प्रदान ठीक ढंग से नहीं हो पाता। प्रीटर्म शिशु में इंट्रावेंट्रिकुलर हेमोरेज या आईवीएच होने की सम्भावना भी ज्यादा होती है। यह वह अवस्था होती है जिसमें मस्तिष्क में लगातार खून बह रहा होता है। खून को बहने से रोकने का तो कोई तरीका नहीं है, इसलिए डॉक्टर खून की आपूर्ति करने के बाद बच्चे को सघन चिकित्सा इकाई में रखकर उसे बचाने की कोशिश करते हैं।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments