Sunday, April 28, 2024
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मुल्तान में एक छोटे से कमरे से पंजाब नेशनल बैंक की शुरुआत की थी सेठ प्रभु दयाल ने

विजय कुमार गुप्ता
    
     मथुरा। इस बात को जानकर लोग आश्चर्यचकित होंगे कि पंजाब नेशनल बैंक जिसकी न सिर्फ संपूर्ण देश बल्कि विदेशों तक में अनेक शाखाएं हैं, की शुरुआत मुल्तान शहर में एक छोटे से कमरे से हुई थी और उसके संस्थापक सदस्यों में लाला लाजपत राय व हमारी सबसे बड़ी बहन स्व० श्रीमती गीता देवी के सगे ददिया ससुर सेठ प्रभु दयाल जी भी थे। इसके संस्थापक सदस्यों में छः रईस लोग थे जिनमें लाला लाजपत राय, सेठ प्रभु दयाल, दयाल सिंह मजीठिया, लाला हरकिशन लाल, लाला लालचंद और लाला ढोलना दास हैं। हमारी बड़ी बहन के ददिया ससुर इतने बड़े रईस थे कि उस जमाने में जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक ही थे, देश की सबसे बड़ी आटा, सूजी, मैदा व बेसन बनाने वाली मिल उन्हीं की थीं। अठ्ठाईस कपास के कारखाने थे तथा उनके अपने निजी हवाई जहाज भी चला करते थे। प्रभु दयाल जी के एक छोटे भाई मुल्तान में सिविल जज भी थे।
     हम महावर वैश्य समाज से हैं। उस समय पूरे देश के महावर वैश्य समाज में मुल्तान वालों के परिवार की हैसियत नंबर वन तो थी ही साथ ही देश की जानी-मानी हस्तियों से उनके अच्छे संपर्क थे। आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने आंदोलन की अगुवाई करने वाले देशभक्तों की बहुत मदद की थी। लाला लाजपत राय से उनकी बहुत निकटता थी।
     अब बात आती है कि इतने बड़े रईस घराने में हम जैसे मध्यम वर्गीय परिवार की बेटी का रिश्ता आखिर कैसे हो गया? यह कहानी भी बड़ी रोचक है। दरअसल बात यह थी कि हमारे जीजाजी स्व० हरगोविंद गुप्ता के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन कृषि मंत्री स्व० श्री राममूर्ति लाल महावर जो सांसद भी रहे थे की बेटी का रिश्ता होने जा रहा था। बात लगभग पक्की सी थी किंतु हमारे जीजाजी को लड़की पसंद नहीं आई। इसी वजह से बात आगे बढ़ने के बजाय थम गई।
     हुआ यह कि हमारी बड़ी बहन के ससुर सेठ मदन लाल गुप्ता व उनके पूरे परिवारी जन कृषि मंत्री की बेटी को देखकर बरेली से वापस दिल्ली लौट रहे थे, तब वे कुछ समय के लिए मथुरा में अपने रिश्तेदार डॉ० बैजनाथ गुप्ता जिनकी भरतपुर गेट पर क्लीनिक थी, के यहां भी रुके। डॉ० बैजनाथ ने सेठ मदन लाल जी से पूंछा कि रिश्ता पक्का हो गया? इस पर सेठ जी ने कहा कि नहीं, तो उन्होंने फिर पूछा कि क्यों? इस पर सेठ जी बोले कि वैसे तो सब ठीक था किंतु गोविंद (हमारे जीजाजी) को लड़की पसंद नहीं आई क्योंकि लड़की का रंग सांवलेपन पर था और थोड़ी मोटी भी थी।
     इस पर डॉ० बैजनाथ ने कहा कि अगर आपको लड़की सुंदर सुशील और भले घर की चाहिए तो मैं एक रिश्ता बताऊं? किंतु आपकी टक्कर का घर नहीं है। इस पर सेठ जी ने कहा कि हमें धन-दौलत और ऊंचे घराने से कोई मतलब नहीं हमें तो अपने बेटे के अनुरूप लड़की चाहिए। इसके पश्चात डॉ० बैजनाथ ने कहा कि लाला नवल किशोर की लड़की गीता आपके पुत्र हरगोविंद के लिए सर्वोत्तम रहेगी। लड़की भी ऐसी देवी स्वरूपा है कि आपको चिराग लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी।
     हमारे पिताजी का नाम सुनकर सेठ मदन लाल जी चौंके और उन्होंने कहा कि ये तो हमारे घर वर्षों से चक्कर लगा रहे हैं किंतु हमने इनके रिश्ते को स्वीकार नहीं किया क्योंकि लोगों का कहना था कि इनके यहां रिश्ता करोगे तो बारात की अच्छी खातिरदारी तो दूर की बात रही, पीने को ढंग से पानीं भी नसीब नहीं होगा। डॉ० बैजनाथ ने उन्हें समझाया कि ऐसी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं लाला नवल किशोर को अच्छी प्रकार से जानता हूं आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी, यह मेरी जिम्मेदारी है। इसके बाद पिताजी को बुलवाया गया और बात ऐसी बनी कि सभी लोग हमारे घर आए तथा हाथों-हाथ सगाई भी हो गई जिस समय सगाई हुई थी उस समय में लगभग चार-पांच वर्ष का था। वह क्षण मुझे अब भी याद है।
     सगाई से पहले और बाद में भी डॉ० बैजनाथ ने पिताजी से ठोक बजाकर तय कर लिया कि बारात में एक से बढ़कर एक ऊंचे लोग आएंगे। ऐसा न हो कि बारातियों की खातिरदारी में कहीं कोई कमी रह जाय। पिताजी ने भी कह दिया कि डॉक्टर साहब आप चिंता न करें। उन दिनों पिताजी का हाथ तंग था क्योंकि आजादी से पूर्व देशभक्तों के पक्ष में तथा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गवाही देने के कारण गोविंद गंज स्थित हमारी पैतृक आढ़त को तत्कालीन शहर कोतवाल पृथ्वी सिंह ने संस्तुति कर सभी लाइसेंसों को निरस्त करा कर कारोबार को तहस नहस करा दिया था। इसी वजह से पिताजी बेरोजगार हो गए और लंबे समय तक बेरोजगार रहने के कारण हाथ तंग था।
     पिताजी के मन में यह बात घर कर गई कि कैसे भी हो न सिर्फ बारातियों की खातिरदारी जोरदार हो बल्कि शादी भी सेठ मदनलाल मुल्तान वालों की गरिमा के अनुरूप हो। इसी कारण उन्होंने लालागंज की लंबी चौड़ी पैतृक जायदाद को बेचने का मन बना लिया। उस जायदाद में श्री ग्रुप वाले पप्पन जी के पिताजी स्व० जमुनादास और ताऊजी स्व० श्री नाथ दास जी मैदा वाले भी किराएदार थे। पिताजी ने सभी किरायेदारों से बात की तो पप्पन जी के ताऊजी स्व० श्री नाथ दास जी मैदा वालों ने पिताजी से कहा कि भाई साहब पूरी की पूरी जायदाद को हमें ही बेच दो और जितने भी पैसे अन्य सभी किरायेदारों से मिलें उससे अधिक हम से ले लो, किंतु पिताजी ने श्री नाथ दास जी की बात नहीं मानी क्योंकि उस समय मकान मालिकों के पक्ष का कानून था मकान मालिक जब भी चाहे किरायेदारों से अपनी जगह को खाली करा सकते थे।
     पिताजी ने श्री नाथ दास जी से साफ साफ कह दिया कि भाई साहब यदि मैंने आपको अपनी पूरी जायदाद बेच दी तो आप शीघ्र ही सभी को बेदखल कर दोगे और ये सभी बेघर व बेरोजगार हो जाएंगे। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण किसी का घोंसला उजड़े। पिताजी ने जिस जिसने जो कुछ दिया सिर माथे स्वीकार किया किन्तु लालच में आकर श्रीनाथ दास जी व जमुना दास जी को अपनी जायदाद नहीं बेची। इस बात को पप्पन जी भी जानते हैं और जब कभी मेरी उनसे बातें होती हैं, इस बात का जिक्र हो जाता है।
     लिखते लिखते मैं प्रसंग से भटक गया। अब आता हूं असल मुद्दे पर पिताजी ने हमारी सबसे बड़ी बहन गीता देवी की शादी इतनी धूमधाम और भव्यता से की, कि पूरे शहर में हल्ला मच गया। बारात की खातिरदारी से सेठ मदन लाल जी भी हक्के बक्के से रह गए और इतने खुश हुए कि पूंछो मत। इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि हमारी बड़ी बहन देवी स्वरूपा तो थीं ही साथ ही उस जमाने में यानी आज से लगभग 65-66 वर्ष पूर्व उन्होंने बी.ए. तक की पढ़ाई पढ़ी थी। उन्हें हम सभी बहन भाई जीजी कहते थे। जीजी की तरह जीजाजी भी अपने देश में एम.ए. करके लंदन पढ़ने गए थे तथा यूनिवर्सिटी टॉप करके भारत लौटे। वे महावर वैश्य समाज के पूरे देशभर में सबसे पहले युवक थे जो विदेश पढ़ने गये। उस समय विदेश पढ़ने जाने वालों के लिए कहते थे कि यह विलायत पढ़कर आया है।
     अब आखिर में एक रोचक बात बताऐ बगैर नहीं रहा जा रहा कि इस रिश्ते के लिए हमारे पिताजी दिल्ली स्थित सेठ मदन लाल जी के घर वर्षों से चक्कर काट रहे थे। पिताजी बताते थे कि मैंने उनके घर 17 चक्कर लगाए किंतु सेठ जी कोई भाव नहीं देते और मैं बैरंग लौट आता। घर लौटकर आते तो माताजी भी मायूस हो जातीं। पिताजी हताश होकर कहते कि अब फिर कभी नहीं जाऊंगा। इसके बाद माताजी कुछ माह बीतते ही खुटखुटा लगाना शुरु कर देतीं कि अब फिर जाओ शायद बात बन जाय। इसका मुख्य कारण यह था कि माताजी और पिताजी बेटी के अनुरूप वर चाहते थे इसी चक्कर में पिताजी ने हिंदुस्तान भर के अनेक शहरों की खाक छान मारी। सभी लड़कों में उन्हें मुल्तान वालों का लड़का श्रेष्ठ लगा। चली बात पर यह भी बतादूं कि जीजी की शादी के बाद सेठ मदन लाल जी की पुत्री पुष्पा देवी की शादी अलवर के सांसद लाला काशीराम के पुत्र हेम कुमार जी से हुई। उस शादी में देश की जानी-मानी हस्तियों ने भी भाग लिया।
     कहते हैं कि जब समय आता है तभी बात बनती है। ठीक इसी प्रकार 17 चक्करों में बात नहीं बनी और जब समय आया तो घर बैठे बिठाऐ ही बात बन गई और दुनियां वाले भौंचक्के से रह गए कि इतने बड़े खानदान में इनकी बेटी का रिश्ता हो गया। तभी कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है।

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