विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। बात लगभग 25-30 वर्ष पुरानीं है। एक दिन पुष्पा शर्मा अचानक हमारे घर पर मिठाई का डिब्बा लेकर आईं। मैंने आने का प्रयोजन पूंछा तो वे बोलीं कि बस वैसे ही चली आई आपको नमस्कार करने। मैंने कहा कि नमस्कार हो गई अब आप इस मिठाई को लेकर वापस चली जाओ तथा फिर कभी यहां मत आना। मैंने उनसे पानीं पीने की बात तो दूर बैठने तक तो नहीं कहा। मेरे इस व्यवहार को देखकर वह हक्की बक्की सी रह गईं और बगैर कोई शिकवा शिकायत किए चुपचाप वापस चली गईं।
उन दिनों मुझे अहंकार बहुत अधिक था तथा किसी को कुछ न समझना मेरा स्वभाव बन गया था। इसका कारण यह था कि उस समय मैं “आज” अखबार को देखता था तथा उस दौरान आज पूरे भन्नाटे पर था। मैं जो कुछ लिख देता उसकी धमक जोर से होती। इसकी वजह से जिले के अधिकारी व नेता मुझे ज्यादा तवज्जो दिया करते थे। यही वजह थी कि मुझ में ऐंठ अकड़ घर कर गई। यही नहीं मैं अपने आपको दुनियां का बहुत बड़ा ईमानदार मानता था। जैसे संसार की सारी ईमानदारी का मूल्यांकन किया जाए तो दो तिहाई ईमानदारी मेरे हिस्से में और बाकी एक तिहाई में पूरी धरती के ईमानदार लोग बट जांय।
खैर अब असली मुद्दे की ओर बढ़ता हूं। पुष्पा शर्मा को इस तरह दुत्कार सी लगाकर बैरंग लौटा देने का मुझे कोई मलाल भी नहीं हुआ और बात आई गई सी हो गई। इस घटना के काफी दिन बाद किसी शादी समारोह में पुष्पा शर्मा से मेरा आमना-सामना हो गया। जहां तक मुझे स्मरण है यह कार्यक्रम पूर्व मंत्री श्याम सुंदर शर्मा के यहां का था। कार्यक्रम में मेरा ध्यान तो पुष्पा जी की ओर नहीं गया किंतु उन्होंने दूर से ही मुझे देख लिया और पास आकर बड़े अदब से हाथ जोड़कर “भाई साहब नमस्कार” कहा तथा मेरी कुशल क्षेम भी पूंछी।
वैसे तो यह बात सामान्य सी थी किंतु मुझे उनके इस व्यवहार से ऐसा महसूस हुआ जैसे पुष्पा जी ने मेरे मुंह पर थप्पड़ सा जड़ दिया कि “विजय गुप्ता एक तू है जो अपने दरवाजे पर आने वाले को अतिथि देवो भव: की नजरों से देखने के बजाय अहंकार में चूर होकर मेरे साथ इतना घटिया व्यवहार किया वह भी एक महिला होते हुए भी और एक मैं हूं जो आमना-सामना होने पर तेरे सम्मान में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रही, तेरी करनी तेरे संग मेरी करनी मेरे संग।
पुष्पा शर्मा के द्वारा इस तरह के शालीन व्यवहार को पाकर मुझे ऐसा लगा कि मानो मैं सजा योग्य अपराधी हूं और पुष्पा जी स्वागत योग्य। मैंने शुरू से ही लोगों के मुंह से पुष्पा शर्मा के बारे में बुराई सुन रखी थी कि पुष्पा शर्मा ऐसी है वैसी हैं किंतु प्रैक्टिकल मैं जो कुछ अनुभव किया वह कुछ और ही निकला। यही कारण है कि वे सभी बड़ी पार्टियों को धता बताकर निर्दलीय रूप से वृंदावन नगर पालिका की चेयरमैन बन गईं।
जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती है जो ताजिंदगी अपने आपको प्रताड़ित करती रहती हैं, उन्हीं में से मेरे साथ घटी एक घटना यह है, जिसकी सजा 25-30 साल के बाद भी मैं मन ही मन भुगत रहा हूं। अगर पुष्पा शर्मा मेरे द्वारा तिरस्कार किए जाने के तुरंत बाद उसी समय ईंट का जवाब पत्थर से दे देतीं (वे ऐसा करने की कुब्बत भी रखती हैं) तो शायद मुझे अपने किए का पछतावा कतई न होता किंतु उन्होंने उस कहावत को चरितार्थ कर दिया जिसे हमारे पत्रकारिता के गुरु स्व० नरेंद्र मित्र जी अक्सर कहा करते थे “मारना है तो मार मत, एहसान कर, एहसान का मारा हुआ खुद ही मर जाएगा। पुष्पा जी ने अपने शालीन व्यवहार से मुझे सचमुच में ही मार दिया। आज इस लेख के द्वारा में उनके बड़प्पन को सलाम करता हूं।