वृंदावन। वंशीवट क्षेत्र स्थित सुदामा कुटी में विभिन्न धार्मिक आयोजनों के मध्य 51 वां सीता राम विवाह महामहोत्सव के तीसरे दिन प्रभु राम जन्म और उनकी बाल लीला का भव्य मंचन किया गया। प्रभु राम के जन्मोत्सव को देख भक्तजन भाव विभोर होकर हो गए नृत्य करने लगे। वहीं महंत सुतीक्ष्णदास महाराज ने बधाई गायन के बीच मिठाई, खिलौने, मेवा और वस्त्र लुटाए।
सुदामा कुटी के महंत सुतीक्ष्ण दास महाराज के सानिध्य में चल रहे इस महोत्सव में रामचरित्र दास महाराज, आचार्य नरहरि दास महाराज एवं सिया दीदी के देख रेख में चल रहा है। यहां सिय पिय मिलन महोत्सव में मंचन के दौरान प्रभु राम की विभिन्न लीलाआें का मनोरज मंचन किया। ब्रम्ह पुत्र मनु व सतरूपा तप करते हैं। वही, ब्रम्हा विष्णु और महेश बारी बारी आकर वरदान देना चाहते हैं लेकिन मनु और सतरूपा अपने तपस्या में लगे रहे हैं। इसके बाद स्वयं भगवान राम वरदान देने के लिए आते हैं। जिनको देकर मनु और सतरूपा दण्डवत कर प्रभु की प्रेरणा से श्री राम के समान रूप के ही पुत्र की वरदान मांगते हैं जिनपर प्रभु श्रीराम बोले मेरे समान दूसरा कोई है ही नहीं इसलिए मैं स्वयं आपकी पुत्र बन कर आऊँगा। वही अगले दृश्य में दिखाया कि दशरथ जी अपने दरबार में उदास बैठे हैं।
मंत्री सुमंत कहते हैं कि, आप क्यों दुखी हैं तब दशरथ जी बताते हैं कि आगे राज्य कैसे चलेगा, कोई संतान नहीं है। इसलिए बहुत दुखी है। तब सुमंत जी कहते हैं कि आप वशिष्ठ जी को अपनी बात सुनाएं। राजा दशरथ वशिष्ट जी के पास पहुंचते हैं। वशिष्ट जी ने उन्हें सरयू नदी के तट पर पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह देते हैं। तत्पश्चात राजा दशरथ सरयू नदी के तट पर बैठ यज्ञ प्रारंभ करते हैं।
यज्ञ के दौरान अग्नि देव प्रकट होते हैं तथा खीर का प्रसाद उन्हें प्रदान करते हुए कहते हैं कि यह प्रसाद अपनी रानियों को खिलाना। जिसके बाद तुम्हे चार पुत्र उत्पन्न होंगे। अग्निदेव की बात मान राजा दशरथ रानियों को प्रसाद खिलाते हैं, जिससे चार पुत्र प्राप्त होते हैं। रघुकुल के वंशजों के जन्म के साथ ही अयोध्या में मंगलाचार सुनाई देने लगता है।इसके बाद बधाई गीतों से पूरा परिसर झूम उठता है।इसके बाद भगवान शंकर स्वयं मदारी का वेश धर हनुमान जी के साथ वहां पहुंचते हैं। इसके साथ ही लीला प्रसंग का समापन होता है तथा भगवान के जयघोष वातावरण गुंजायमान हो जाता है।
इस अवसर पर चित्रकूट रमानंदाचार्य पीठ के युवराज, खांडवा से ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, महंत रामदास महाराज, शुक्राचार्य पीठ से पं रमेश चंद्राचार्य आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।