लखनऊ। यूपी सरकार ने डॉक्टरों के रिटायरमेंट की उम्र 5 साल और बढ़ाने का फैसला लिया है। इसके लिए शासन स्तर पर प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री के इस फैसले को लेकर डॉक्टर एक मत नहीं हैं। डॉक्टरों का एक वर्ग इसका विरोध कर रहा है तो एक वर्ग इस फैसले को उचित ठहरा रहा है।
वर्तमान में डॉक्टरों के रिटायरमेंट की उम्र 65 साल निर्धारित है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे 5 साल बढ़ाकर 70 साल करने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री के इस फैसले के पीछे कोरोना काल में डॉक्टरों की संख्या में कमी को बड़ी वजह माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ने से उनके अनुभव का ज्यादा से ज्यादा लाभ लिया जा सकेगा। हालांकि, सरकार का यह फैसला लागू होने से पहले ही विवाद भी शुरू हो गए हैं।
लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान की फैकल्टी फोरम ने मुख्यमंत्री के इस फैसले का विरोध किया है। फोरम के सदस्यों का कहना है कि उम्र बढ़ने के साथ ही कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ज्यादा उम्र के डॉक्टर मरीजों का बेहतर इलाज नहीं कर पाएंगे। इससे मरीजों का फायदा होने के बजाय नुकसान ही होगा।
इसके अलावा अगर यह फैसला लागू होता है तो नए छात्रों के लिए फैकल्टी मेंबर की सीटें भी नहीं बढ़ पाएंगी जिससे नए डॉक्टरों को मौका नहीं मिल पाएगा। फोरम ने इस मामले में विरोध दर्ज कराने के लिए जनरल बॉडी मीटिंग बुलाने का निर्णय लिया है। दूसरी तरफ, कुछ डॉक्टर इस फैसले के समर्थन में भी आ गए हैं। ऐसे डॉक्टरों का कहना है कि राजनीति में 75 साल से ज्यादा उम्र वाले व्यक्ति काम कर रहे हैं। ऐसे में अगर डॉक्टर स्वस्थ हैं तो वह भी 70 साल की उम्र तक काम कर सकते हैं।
कैबिनेट से मंजूरी मिलते ही यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी
जो डॉक्टर 62 साल की उम्र में वीआरएस लेना चाहेंगे, उन्हें रिटायर करने की सुविधा भी दी जाएगी। इस पूरे मामले में प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना का कहना है कि रिटायरमेंट के बाद अक्सर डॉक्टर अपना क्लीनिक खोल लेते हैं या किसी बड़े अस्पताल में सेवाएं देते हैं। इससे बेहतर है कि वह अपनी सेवाएं सरकार के लिए जारी रखें।