Friday, March 29, 2024
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कब और किसने बनाए अखाड़े, क्या है इनकी परंपरा ?, जानिए


अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की सोमवार को संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई। उनका शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फंदे से लटका मिला। उनकी मौत को लेकर अलग-अलग तरह की बात सामने आ रही हैं।

मौके से पुलिस को सुसाइड नोट मिलने के बाद उनके शिष्य आनंद गिरि को गिरफ्तार कर लिया गया है। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे। कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था, जिसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था।

अखाड़े कब और कैसे अस्तित्व में आए?

कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। इन अखाड़ों का गठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए किया गया था। उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा संकट में थी, क्योंकि बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपराओं का निषेध था। मूलत: धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना की तर्ज पर ही अखाड़ों को तैयार किया गया था। जिसमें उन्हें योग, अध्यात्म के साथ शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। नासिक कुंभ को छोड़कर बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं। नासिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं। यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन 1772 से चली आ रही है।

अखाड़ों की अपनी व्यवस्थाएं होती हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन की है। इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए कमेटी के चुनाव होते हैं, लेकिन अखाड़ा प्रमुख का पद अलग होता है, जो अखाड़ों की अगुआई करता है। 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर पद सबसे बड़ा होता है, ये अखाड़े के प्रमुख आचार्य होते हैं, जिनके मार्गदर्शन में अखाड़े काम करते हैं, महंत और महामंडलेश्वर स्तर के संतों की अखाड़े में एंट्री इन्हीं की अनुमति से होती है और ये ही उनके आचार्य माने जाते हैं।

वहीं, वैष्णव अखाड़ों में अणि महंत पद सबसे बड़ा होता है। इसमें महामंडलेश्वर जैसे पदों के समतुल्य श्रीमहंत पद होता है। इन सभी श्रीमहंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है, जो अखाड़े का संचालन करते हैं।

ये 13 अखाड़े कौन से हैं?

परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।

शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। यह साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में पारंगत होता है। अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ। इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया था। शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया।

क्या अखाड़ों में चुनाव होते हैं?

अखाड़े के साधु-संतों के मुताबिक अखाड़े लोकतंत्र से ही चलते हैं। जूना अखाड़े में छह साल में चुनाव होते हैं। कमेटी बदल दी जाती है। हर बार नए को चुनते हैं, यह इसलिए ताकि सभी को नेतृत्व का मौका मिले। सभी संतों में भी अच्छी नेतृत्व क्षमता आए। कुछ अखाड़ों में बाकायदा चुनाव प्रक्रिया होती है, जरूरत पर वोटिंग भी होती है। अच्छा काम करने वाले को दोबारा चुना जाता है, नहीं करने पर बदल दिया जाता है। कुछ अखाड़े ऐसे भी हैं जहां चुनाव नहीं होता है। इसी तरह अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव सहित 16 लोगों की कमेटी चुनी जाती है, इसे कैबिनेट कहते हैं। कमेटी (कैबिनेट) की समय-समय पर बैठक होती है। आपात बैठक का भी प्रावधान है। सिंहस्थ या कुंभ में जब भी धर्मध्वज की स्थापना होती है, कमेटी स्वत: भंग हो जाती है। सारे अधिकार दो प्रधान के पास आ जाते हैं, यह मिलकर पूरे सिंहस्थ या कुंभ की व्यवस्था संभालते हैं। कुंभ-सिंहस्थ के बाद कमेटी वापस अस्तित्व में आ जाती है।

इन अखाड़ों में होता है चुनाव

जूना अखाड़ा : 3 और 6 साल में चुनाव। 3 साल में कार्यकारिणी, न्याय से जुड़े साधुओं का। 6 साल में अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष।

पंचायती निरंजनी अखाड़ा : पूर्ण कुंभ, अद्र्धकुंभ इलाहाबाद में छह-छह साल में नई कमेटी चुनते हैं।

पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा : 5 साल में पंच परमेश्वर चुनते हैं।

पंच दशनामी आवाहन अखाड़ा : तीन साल में रमता पंच। बाकी छह साल में चुनाव।

पंचायती आनंद अखाड़ा : छह साल में होते हैं चुनाव।

पंच अग्नि अखाड़ा : तीन साल में चुनाव।

पंच रामानंदी निर्मोही अणि अखाड़ा : छह साल में चुनाव।

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