Friday, April 26, 2024
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464 साल पुरानी मुड़िया शोभायात्रा परंपरा का 13 जुलाई को संत करेंगे निर्वहन  

  • सनातन गोस्वामी की स्मृति में अनुयायी शिष्य सिर मुंडन कराकर निकालते हैं मुड़िया शोभायात्रा
  • 1558 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन पर पहलीवार निकली थी, मुड़िया यात्रा

कमल सिंह यदुवंशी
गोवर्धन।
विश्व प्रसिद्ध मुड़िया पूर्णिमा मेला संत सनातन की भक्ति और आस्था का केंद्र है। भक्ति के सागर में मचलती श्रद्धा और संस्कृति  की लहरें और बेतादाद श्रद्धालु भक्तों का अनवरत प्रवाह ही उत्तर भारत के विशाल राजकीय मुड़िया पूर्णिमा मेला की परिभाषा है। इक्कीस किमी परिक्रमा मार्ग में पांच दिनों तक अटूट मानव श्रृंखला मिनी विश्व का नजारा पेश करती आई है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को ही गुरू पूर्णिमा, मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गोवर्धन महाराज की भक्ति में डूबे सनातन के अनुयायी 13 जुलाई को 464 वें मुड़िया महोत्सव का निर्वहन करेंगे।  

12 जुलाई को होगा संतो का मुंडन

मुड़िया संत रामकिशन दास ने बताया कि दो साल कोविड महामारी के चलते मुड़िया शोभा यात्रा सूक्ष्म रूप से निकाली गई थी। इस बार परंपरा का भव्य रूप से निर्वहन किया जाएगा। 12 जुलाई को चकलेश्वर स्थित राधा श्याम सुंदर मंदिर में संत मुंडन कराएंगे। इसके उपरांत मानसी गंगा में स्नान कर सनातन गोस्वामी के समाधि स्थल पर हरिनाम संकीर्तन शुरू होगा। 13 जुलाई को वाद्य यंत्र ढप, ढोल, मृदंग, झांझ, मंजीरा हारमोनियम के साथ हरिनाम संकीर्तन करते हुए मुड़िया शोभायात्रा नगर भ्रमण को निकाली जाएगी। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार सनातन गोस्वामी का आविर्भाव वर्ष 1488 में पश्चिम बंगाल के रामकेली गांव, जिला मालदा के भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदीय कर्णाट विप्र परिवार में हुआ था। वे पश्चिम बंगाल के राजा हुसैन शाह के यहां मंत्री हुआ करते थे। चैतन्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर सनातन गोस्वामी उनसे मिलने बनारस आ गए। चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा से ब्रजवास कर भगवान कृष्ण की भक्ति करने लगे। ब्रज में विभिन्न स्थानों पर सनातन भजन करते थे। वृंदावन से रोजाना गिरिराज परिक्रमा करने गोवर्धन आते थे।  सनातन जब वृद्ध हो गए, तो गिरिराज प्रभु ने उनको दर्शन देकर शिला ले जाकर परिक्रमा लगाने को कहा, चकलेश्वर मंदिर के समीप भजन कुटी बनी हुई है। मुड़िया संतों के अनुसार 1558 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन हो जाने के बाद गौड़ीय संत एवं ब्रजजनों ने सिर मुंडवाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सात कोसीय गिरिराज परिक्रमा लगाई। तभी से गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाने लगा। आज भी सनातन गोस्वामी के तिरोभाव महोत्सव पर गौड़ीय संत एवं भक्त सिर मुड़वाकर मानसीगंगा की परिक्रमा कर परंपरा का निर्वहन करते हैं। 13 जुलाई को अनुयायी संत 464 वीं मुड़िया शोभायात्रा निर्वहन करेंगे।

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