Wednesday, May 15, 2024
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जीएलए की छात्रा का ‘बायोडिग्रेडेबल डायपर पिमपेम‘ का पेटेंट पब्लिश

  • जीएलए बायोटेक्नोलॉजी विभाग की छात्रा ने सुझाया बायोडिग्रेडेबल डायपर आइडिया

मथुरा : प्रकृति और बच्चों की परवरिश को ध्यान में रखते हुए जीएलए विश्वविद्यालय, मथुरा की एमएससी बायोटेक्नोलॉजी की छात्रा ने बायोडिग्रेडेबल डायपर को लेकर अपना विचार साझा किया है। छात्रा के इस विचार का पेटेंट भी पब्लिश हो गया है।

अक्सर देखा जाता है कि बच्चों के डायपर पहनने के बाद रैशेज की अधिकतर समस्या आती है, जिस कारण बच्चे दर्द की समस्या से भी जूझते हुए देखे जा सकते हैं। इसके अलावा प्रयोग में लाये गए डायपर को यूंही फैंक दिया जाता है, जो कि वर्षों तक नष्ट नहीं हो पाता है। जिस कारण प्रकृति का दोहन भी देखने को मिल रहा है। ऐसी कई समस्याओं से चिंतित होकर जीएलए विष्वविद्यालय, मथुरा की एमएससी बायोटेक्नोलॉजी की छात्रा गरिमा पोखाल ने एक नया आइडिया शेयर कर पेटेंट पब्लिश कराने में सफलता पायी है। छात्रा का यह आइडिया न्यूजेन आइईडीसी के कॉर्डिनेटर डा. मनोज कुमार के दिशा-निर्देशन में पेटेंट पब्लिश हुआ है।

छात्रा गरिमा एक दावे के साथ कहती हैं कि वर्तमान में बाजार में जो डायपर बिक रहे हैं उनमें सोडियम पॉलीएक्रालाइट कैमिकल का प्रयोग किया जाता है, जो कि बच्चों की त्वचा के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। इसके अलावा वह डायपर नश्ट होने में भी कई वर्शों का समय ले रहा है।
छात्रा ने बताया कि उनके द्वारा शेयर किए आइडिया में बच्चों की परवरिश और प्रकृति को संरक्षण पर काफी विचार विमर्श किया है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो उनके द्वारा षेयर किए गए आइडिया के माध्यम से बायोडिग्रेडेबल डायपर तैयार किए जाएंगे। उन्होंने आइडिया में बताया है कि बायोडिग्रेडेबल अवयव से मिलकर तैयार होने वाले डायपर में काइटोसन एवं सोडियम एल्गिनेट जैसे रसायनों का प्रयोग किया जायेगा, जो कि बच्चों को रैशेज की समस्या और प्रकृति के संरक्षण में अहम साबित होंगे। छात्रा ने बताया कि बायोडिग्रेडेबल डायपर जल्द ही नष्ट भी होगा।

विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीर सिंह ने छात्रा की सफलता पर कहा कि बायोटेक विभाग नई आधुनिकता को जन्म देने में काफी भूमिका निभा रहा है। यहां की लैब्स आधुनिक होने के नाते से रिसर्च के क्षेत्र के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही हैं।
डीन रिसर्च प्रो. कमल शर्मा ने बताया कि छात्रा का यह आइडिया बच्चों की परवरिष के लिए तो काफी योगदान देगा ही, बल्कि प्रकृति के संरक्षण में भी बहुउपयोगी सिद्ध होगा। उन्होंने बताया कि इस आइडिया को जमीं पर लाने के लिए भी कार्य किए जाएंगे और पेटेंट ग्रांट हेतु अपने प्रयास रहेंगे।

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